ADHURI KAVITA SMRITI
रविवार, 10 मई 2015
475 . छत नभ के विस्तृत हैं
४७५
छत नभ के विस्तृत हैं
पर अपने - अपने खोल लो
उड़ो आकाश में दूर - दूर
आश्रय चाहिए तुझको मन में
जगत ही है जल रहा
अनान्द्ग्नी है बस माँ में !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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