मंगलवार, 23 जून 2015

507 . मान लो यह सीख मेरी

५०७ 
मान लो यह सीख मेरी 
धरो ध्यान माँ की थोड़ी 
फिरो मत भोगों की ओर 
कर इनसे शत्रु सा वैर 
विषयों को साँप तुम जानो 
कभी न इनसे प्रीति तुम ठानो 
भोगों से जो हो गयी भेंट 
हो गयी अधोगति समझो तुम ठेंठ 
लो इन सबसे मुख मोड़ 
मुड़ो माँ चरणो की ओर 
अन्यथा कहीं न होगी तेरी ठौड़ 
' सवेरा ' की कथनी पे करो गौर  !

सुधीर कुमार ' सवेरा '

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें