सोमवार, 10 अगस्त 2015

530 . मैं हूँ मन मोहन

                                       यादें 
     ( मैं और सुधा उनके बच्चे के जनमोत्स्व पर )
५३० 
मैं हूँ मन मोहन 
मैं कितना बड़ा हूँ बेशर्म 
मन तो मोह न पाया जनता का 
तन मन धन से हूँ मैडम जी का 
तीनो लोकों में है लूट मचाया 
जल थल नभ 
धरती पाताल आकाश कांपते 
हर तरफ हमारी लुटेरी सेना ही है नाचती 
कुपात्रों को अपनी कीमती वोट देने की सजा 
आखिर जनता कब तक भोगे 
देर हुई बहुत अब तो सोयी जनता जागे 
वर्ना वर्षों तक रोते रहेंगे हम अभागे 
एक था शौरी भूल भी गए होंगे सारे 
वर्षों से फिर रहे थे मारे - मारे 
NDA की जिसने लुटिया थी डूबाई 
विनिवेश मंत्री बनकर कौड़ियों में पीएसयू बेचवाई 
अचानक कुंडली उनकी है फिर जागी 
सुर में सुर मिला रहे हैं 
घूम घूम कर हमें बता रहे हैं 
एफडीआई से सोये भाग्य जागेंगे 
इससे ही गरीबी दूर भगाएंगे 
मिलकर सारे कसम खाइये 
उसके साथ - साथ 
इन्हे भी हजम कर जाइए !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २५ - ०९ - २०१२ 
८-- ०९ pm   

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