बुधवार, 2 सितंबर 2015

549 .बचपन का गाँव क्यों इतना याद आता

                                    यादें 
( रक्षा बंधन के पावन अवसर पर बेटे उज्जवल सुमित और बिटिया सिद्धिदात्री )
५४९ 
बचपन का गाँव क्यों इतना याद आता 
जबकि सड़कें और घर थे बेहद कच्चे 
हर साल छपड़ परते थे छाड़ने 
सामने कुंआं था नहाने धोने को पोखर थे 
विकसित हुआ गाँव कुंएं मूंदे गए 
घर और सड़कें हो गए पक्के 
मोटर और टंकी लग गए घरों में 
टीवी कम्प्यूटर से हो गए लैस 
टूट गए पोखर के कछाड़ 
पानी हो गए कीचड़ समान
जहाँ हर नर नारी बच्चे बूढ़े थे नहाते 
आज पता नहीं क्यों वो बचपन के गाँव बहुत याद आते 
इसी पोखर में था तैरना सीखा 
बचपन में यहीं संस्कार भी थे मिलते 
जब बड़े बुजुर्गों को संध्या करते थे देखते  
विकास के दौड़ में जल संरक्षण को भूले 
कल को बोरिंग कहाँ से चलेंगे क्यों नहीं समझते 
घर और सड़कों की तरह दिल में भी कंकर पत्थर हैं भरते 
पता नहीं क्यों वो गाँव आज याद बहुत हैं आते !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०४ -०२ - २०१३ 
१० - ०८ pm  

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

548 . बड़े ही कठिन हैं पर ऐ पग तूँ बढे चलो

                                      यादें 
( बेटा उज्जवल सुमित बिटिया सिद्धिदात्री के पाणी ग्रहण के सुअवसर पर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए )
५४८
बड़े ही कठिन हैं पर ऐ पग तूँ बढे चलो 
नजर अपनी तूँ चारों तरफ गड़ाए रखो 
तुम्ही से आएगा नव विहान 
बस धैर्य तुम अपना बनाये रखो 
मत खोने दो अपनी चेतनता 
बस हौसला बनाये रखो 
तुम सुभाष , आजाद , भगत के वंशज 
बस नस नस में बिजली फड़काए रखो 
महाराणा प्रताप सरीखे तुम 
विपदाएँ क्या बिगाड़ लेंगी तेरा 
चाणक्य की तरह मूल से भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंको 
बस पग को न थकने दो हौसला बनाये रखो 
अपमान और दुत्तकार पीओ नीलकंठ की तरह 
समाज को गर्त में जाने से पर रोक लो 
तीता खट्टा मीठा स्वाद मत देखो 
बस लोहे के चने चबाये जाओ 
सबों को साथ ले इस महासंग्राम को विजयी करो 
बस पग को न थकने दो हौसला बनाये रखो !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०३ - ०२ - २०१३ 
७ - ३० pm