यादें
( रक्षा बंधन के पावन अवसर पर बेटे उज्जवल सुमित और बिटिया सिद्धिदात्री )
५४९
बचपन का गाँव क्यों इतना याद आता
जबकि सड़कें और घर थे बेहद कच्चे
हर साल छपड़ परते थे छाड़ने
सामने कुंआं था नहाने धोने को पोखर थे
विकसित हुआ गाँव कुंएं मूंदे गए
घर और सड़कें हो गए पक्के
मोटर और टंकी लग गए घरों में
टीवी कम्प्यूटर से हो गए लैस
टूट गए पोखर के कछाड़
पानी हो गए कीचड़ समान
जहाँ हर नर नारी बच्चे बूढ़े थे नहाते
आज पता नहीं क्यों वो बचपन के गाँव बहुत याद आते
इसी पोखर में था तैरना सीखा
बचपन में यहीं संस्कार भी थे मिलते
जब बड़े बुजुर्गों को संध्या करते थे देखते
विकास के दौड़ में जल संरक्षण को भूले
कल को बोरिंग कहाँ से चलेंगे क्यों नहीं समझते
घर और सड़कों की तरह दिल में भी कंकर पत्थर हैं भरते
पता नहीं क्यों वो गाँव आज याद बहुत हैं आते !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०४ -०२ - २०१३
१० - ०८ pm
( रक्षा बंधन के पावन अवसर पर बेटे उज्जवल सुमित और बिटिया सिद्धिदात्री )
५४९
बचपन का गाँव क्यों इतना याद आता
जबकि सड़कें और घर थे बेहद कच्चे
हर साल छपड़ परते थे छाड़ने
सामने कुंआं था नहाने धोने को पोखर थे
विकसित हुआ गाँव कुंएं मूंदे गए
घर और सड़कें हो गए पक्के
मोटर और टंकी लग गए घरों में
टीवी कम्प्यूटर से हो गए लैस
टूट गए पोखर के कछाड़
पानी हो गए कीचड़ समान
जहाँ हर नर नारी बच्चे बूढ़े थे नहाते
आज पता नहीं क्यों वो बचपन के गाँव बहुत याद आते
इसी पोखर में था तैरना सीखा
बचपन में यहीं संस्कार भी थे मिलते
जब बड़े बुजुर्गों को संध्या करते थे देखते
विकास के दौड़ में जल संरक्षण को भूले
कल को बोरिंग कहाँ से चलेंगे क्यों नहीं समझते
घर और सड़कों की तरह दिल में भी कंकर पत्थर हैं भरते
पता नहीं क्यों वो गाँव आज याद बहुत हैं आते !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०४ -०२ - २०१३
१० - ०८ pm