ADHURI KAVITA SMRITI
शनिवार, 6 मई 2017
755 . जय - जय दामिनि देवि भवानी। करह कृपा मोहि निय सुत जानी।
७५५
जय - जय दामिनि देवि भवानी। करह कृपा मोहि निय सुत जानी।
मन कय दीप ज्योति कय ज्ञान। आरतिकरन सहस्त्र दले मान।।
आनन्द गोघृत मन कय भावे। नृप भूपतीन्द्र मल्ल भने गुणिगावे।।
( मैथिली शैव साहित्य )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
‹
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें