शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

550 . माँ दुर्गाजी इस सृष्टि की आदि शक्ति हैं !



                              साभार - गूगल 
५५० 
माँ दुर्गाजी इस सृष्टि की आदि शक्ति हैं ! पितामह ब्रह्माजी , भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीकी शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति , पालन पोषण और संहार करते हैं ! अन्य देवता भी उन्हीकी शक्तिसे शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं ! माँ दुर्गाजी के नव रूप हैं ! उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं ----
१ - शैलपुत्री 
२ - ब्रम्ह्चारणी 
३ - चंद्रघंटा 
४ - कुष्मांडा 
५ - स्कंदमाता 
६ - कात्यायनी 
७ - कालरात्रि 
८ - महागौरी 
९ - सिद्धिदात्री !
माँ दुर्गाजी द्वारा ये नव रूप धारण किये जानेके विविध हेतु हैं ! दुर्गापूजाके अवसरपर इन नव रुपोंकी पूजा - उपासना विधि - विधानके साथ की जाती है ! हमें माँ के इन नव रुपोंसे परिचित होना चाहिए ! इन रुपोंके पीछे निहित तात्विक अवधारणाओंका परिज्ञान हमारे धार्मिक , सांस्कृतिक , सामाजिक , विकासके लिए अपरिहार्य रूपसे आवश्यक है !
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१ - शैलपुत्री 
वन्दे वांछितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम !
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् !!

माँ दुर्गा अपने पहले स्वरुप में " शैलपुत्री " के नाम से जानी जाती हैं ! पर्वतराज हिमालयके वहाँ पुत्रीके रूपमे उत्पन्न होनेके कारण इनका यह " शैलपुत्री " नाम पड़ा था ! वृषभ - स्थिता इन माताजीके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल - पुष्प सुशोभित हैं ! यही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं !अपने पूर्वजन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं ! तब इनका नाम सती था ! इनका विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था ! एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया ! इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना - अपना यज्ञ - भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया ! किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यग में निमंत्रित नहीं किया ! सती ने जब सुना की हमारे पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं , तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा ! अपनी यह इक्षा उन्होंने शंकर जी को बतायी ! सारी बातों पर विचार करनेके बाद उन्होंने कहा - " प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं ! अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है ! उनके यज्ञ - भाग भी उन्हें समर्पित किये हैं , किन्तु हमें जान बूझकर नहीं बुलाया है ! कोई सूचनातक नहीं भेजी है ! ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेष्कर नहीं होगा ! शंकर जी के इस उपदेशसे सती का प्रबोध नहीं हुआ ! पिता का यज्ञ देखने , वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी ! उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जानेकी अनुमति दे दी !
सती ने पिता के घर पहुँच कर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात - चीत नहीं कर रहा है ! सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं ! केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया ! बहनो की बातों में व्यंग और उपहास के घाव भरे हुए थे ! परिजनों के इस व्यव्हार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुंचा ! उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकर जी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है ! दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे !यह सब देख कर सती का ह्रदय क्षोभ , ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा ! उन्होंने सोंचा भगवान शंकर जी की बात न मान , यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है ! 
वह अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं ! उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जला कर भस्म कर दिया ! व्रजपात के समान इस दारुण - दुःखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया ! 
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया ! इस बार वह ' शैलपुत्री ' नाम से विख्यात हुई ! पार्वती , हेमवती भी उन्ही के नाम हैं ! उपनिषद की एक कथा के अनुसार इन्हीने हेमवती स्वरुप से देवताओं का गर्व - भंजन किया था !
' शैलपुत्री ' देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ ! पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वह शिवजी की अर्धांग्नी बनी ! नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं ! नवरात्र - पूजन में प्रथम दिवस इन्ही की पूजा और उपासना की जाती है ! इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं ! यहीं से उनकी योगसाधना का प्रारम्भ होता है ! ----------- साभार   

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