५६०
धनतेरस - श्री लक्ष्मी पूजनोत्सव
समुद्र - मंथन के अंतिम दिन यानी प्रकाश पर्व दीपावली के दो दिन पूर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को पूरे देश में धनतेरस मनाने की परंपरा है ! इस दिन कोई वस्तु - विशेषकर बर्तन या धातु विशेषकर सोना - चांदी खरीदना सगुन होता है ! इस दिन भगवान विष्णु की पूजा किसी लालच में नहीं , बल्कि शुद्ध भाव से करनी चाहिए !
लक्ष्मी से स्थूल तात्पर्य है - अर्थ !
लक्ष्मी - पूजा वस्तुतः अर्थ का पर्व है ! गणेश , दीप - पूजन और गौ द्रव पूजन इस पर्व की विशेषतायें हैं ! गोधूलि लग्न में पूजा प्रारम्भ करके महानिशि काल तक महालक्ष्मी के पूजन को जारी रखा जाता है !
माँ महालक्ष्मी को आठ चीजें बेहद प्रिय - १ - एक आँख वाला श्रीफल ! २ - शंख ! ३ - कौड़ी ! ४ - कमल गट्टा !
५ - चाँदी ! ६ - श्रीयंत्र ! ७ - धनकुबेर ! ८- मोती !
वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक लक्ष्मी का स्वरुप अत्यंत व्यापक रहा है ! ऋग्वेद की ऋचाओं में ' श्री ' का वर्णन समृद्धि एवं सौंदर्य के रूप में हुआ है ! अथर्वेद में पृथ्वी सूक्त में ' श्री ' की प्रार्थना करते हुए ऋषि कहते हैं " श्रिया माँ धेहि " अर्थात मुझे श्री की प्राप्ति हो ! श्रीसूक्त में ' श्री' का आवाहन जातवेदस के साथ हुआ है ! ' जातवेदोमआवह ' जातवेदस अग्नि का नाम है ! अग्नि की तेजस्विता तथा श्री की तेजस्विता में भी साम्य है !
विष्णु पुराण में लक्ष्मी की अभिव्यक्ति दो रूपों में की गई है - श्री रूप और लक्ष्मी रूप ! श्रीदेवी को कहीं - कहीं भू देवी भी कहते हैं ! इसी तरह लक्ष्मी के दो स्वरुप हैं ! सच्चिदानन्दमयी लक्ष्मी श्री नारायण के ह्रदय में वास करती हैं ! दूसरा रूप है भौतिक या प्राकृतिक संपत्ति की अधिष्टात्री देवी का ! यही श्री देवी या भूदेवी हैं ! सब संपत्तियों की अधिष्ठात्री श्रीदेवी शुद्ध सत्वमयी है ! इनके पास लोभ , मोह , काम , क्रोध और अहंकार आदि दोषों का प्रवेश नहीं है ! यह स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी , राजाओं के पास राजलक्ष्मी , मनुष्यों के गृह में गृहलक्ष्मी , व्यापारियों के पास वाणिज्यलक्ष्मी और युद्ध विजेताओं के पास विजयलक्ष्मी के रूप में रहती हैं !
अष्टसिद्धि और नवनिधि की देवी श्रीलक्ष्मी भौतिक मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं ! कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को जब सूर्य और चन्द्र दोनों तुला राशि में होते हैं , तब दीपावली का त्योहार मनाया जाता है ! इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर की तरंगों पर शयन - गामी होते हैं और श्रीलक्ष्मी भी दैत्य भय से विमुख होकर कमल के उदर में सुख से सोती हैं !
भारतीय पद्धति के अनुसार आराधना , उपासना व् अर्चना में आधिभौतिक , आध्यात्मिक और आधिदैविक - इन तीनों रूपों का समन्वित व्यवहार होता है ! दीपावली में सोना - चांदी आदि के रूप में आधिभौतिक लक्ष्मी से संबंध स्वीकार करके पूजन किया जाता है ! घरों को दीपमाला आदि से सुसज्जित करना लक्ष्मी के आध्यात्मिक स्वरुप की शोभा बढ़ाने का उपक्रम है !
देवी की जितनी भी शक्तियां मानी गयी हैं , उन सब की मूल भगवती लक्ष्मी ही हैं ! ये ही सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति हैं ! लक्ष्मी नित्य सर्वव्यापक हैं ! पुरुषवाची भगवान हरी हैं और स्त्रीवाची लक्ष्मी ! इनसे इतर कोई नहीं हैं !
सामान्यतः दीपावली पूजन का अर्थ लक्ष्मी पूजा से लगाया जाता है , किन्तु इसके अंतर्गत गणेश गौरी , नवग्रह , षोडशमातृका , महालक्ष्मी , महाकाली , महासरस्वती , धनकुबेर , तुला और मान की भी पूजा होती है ! मान्यता है कि ये सभी श्रीलक्ष्मी के साथ अंग - सदृश होते हैं !
हिरण्यवर्णां हरिणी सुवर्णरजतस्रजाम ! चन्द्राम हिरण्मयीं , लक्ष्मी जातवेदो मा वह !
ऋग्वेद में ऐश्वर्य और समृद्धि के लिए वैदिक उपासना का विधिवत वर्णन है ! विश्व में प्राचीन सिंधु सभ्यता की खुदाई में दीप लक्ष्मी की खंडित मूर्तियां मिली थी , जो तत्कालीन भारतीय सम्पन्नता और श्री - वैभव की सूचक है ! भारतीय संस्कृति में श्रीलक्ष्मी के अनेक रूप मिलते हैं ! गौ , घोड़े , हाथी , रथ आदि को लक्ष्मी की मान्यता प्राप्त है ! गौ कामधेनु है ! घोड़े अश्वशक्ति , हाथी गजलक्ष्मी और रथ वाहनश्री हैं ! ये क्रमशः कृषि , कल - कारखाने , उद्दोग - धंधे और परिवहन व्यापार के प्रतीक हैं ! : व्यापारे वसति लक्ष्मी " !
' अहम राष्ट्र संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथम यज्ञियानाम ! तां मा देवा व्यदधुः पुरूत्रा मुरिस्थात्रां भुर्यावेशयन्तीम् ! श्रीलक्ष्मी कहती हैं - मैं ही जगत की लक्ष्मी और धन ऐश्वर्य की देवी हूँ !
समस्त जगत में श्रीलक्ष्मी का राज है ! रूद्र , वसु , वरुण , इंद्र , अग्नि आदि रूपों में श्रीलक्ष्मी शोभायमान होती हैं ! वे सभी भूतों में लक्ष्मी के रूप में विराजमान रहती हैं ! ' या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता ' ! सूर्य में उषा लक्ष्मी है , जिसे यूनानी भाषा में अरोरा कहा जाता है ! चन्द्र में ज्योत्सना लक्ष्मी है , जिसे यूनान में डायना कहते हैं ! सागर में नीरजा लक्ष्मी हैं , जिसे निरीड कहते हैं और पृथ्वी में वसुमती रत्नगर्भा के रूप में लक्ष्मी निवास करती हैं ! वसु का अर्थ है धन ! पृथ्वी रत्नो की खान है ! रत्न - गर्भा है ! वह स्वर्ण - गर्भा के साथ - साथ रजत गर्भा और अयस गर्भा है ! विश्व की सारी नारियों में ये रूप गुण और सौंदर्य पाये जाते हैं ! समस्त विश्व की नारियां श्रीलक्ष्मी की संतति है , जो अपनी संस्कृति - सभ्यता और परंपरा का निर्वहन कर रही हैं !
नारी प्रकृति की अद्भुत रचना है ! वह लक्ष्मी की अंश है ! जहाँ लक्ष्मीरूपा नारियां सम्मानित होती हैं , वहां क्षीर सागर से लक्ष्मी प्रकट होती हैं और ओलपिंक पर्वत से रीया , मेयो , लारा सिरिन , प्रासग्रीन आदि अप्सराएं आ जाती हैं !
ईरान में पैरिक देव जाति की नारियां जल लक्ष्मी कहलाती थी ! फ़ारसी में पैरिक परी है , जिसे अप्सरा कहा जाता है ! अप जल का बोधक है , जिसका अर्थ होता है जल में बिहार करने वाली !
समुद्र मंथन से जो चौदह रत्न निकले थे , उनमे श्रीलक्ष्मी के साथ अप्सरा भी थीं ! अप्सरा आधुनिक अरब , ईराक , ईरान की नारियां हैं ! यानि कि वे श्रीलक्ष्मी की संताने हैं ! श्वेतवर्ण नारी यूरोप की पहचान है ! यूरोप में एक श्वेता लक्ष्मी थीं !
यूरोप का नामकरण युरोपा से हुआ है ! युरोपा वैदिकी रूपसी उर्वशी थी ! स्वर्ग की लक्ष्मी शची है , जिन्हे यूनान में हेरा कहा जाता है ! वहां राष्ट्रिय समृद्धि की सूचक है !
भारतीय नारियां श्रीलक्ष्मी को अपना आदर्श मानती हैं ! उनके श्रृंगार , परिधान और रूप सज्जा का अनुकरण करती हैं ! यूरोप की नारियां अपनी सौंदर्य देवी वीनस , निरिड और ओसियाड के परिवेश को अपनाती हैं ! इतालवी युवतियां फेमिना की तरह सजती - संवरती हैं ! इस प्रकार पुरे विश्व में श्रीलक्ष्मी की सौंदर्य - सत्ता हैं !
आभूषण - विवाह के समय कन्या सोने के हार , चांदी की माला और अन्य आभूषणों को पहनकर लक्ष्मी स्वरूपा होती हैं , क्योंकि श्रीलक्ष्मी को स्वर्ण और रजत के अलंकार प्रिय होते हैं ! लोक - परंपरा के अनुसार स्वर्ण में श्रीलक्ष्मी निवास करती हैं ! दीपावली के दिन लोग सोने - चांदी की पूजा कर श्रीलक्ष्मी का आवाहन करते हैं !
परिधान - विवाह के समय लक्ष्मी जी ने लाल परिधान यानी चुनरी पहनी थी ! विष्णु जी ने पीला वस्त्र धारण किया था ! आज भी लोक परंपरा में कन्या और वर को क्रमशः लाल और पीला परिधान धारण किये हुए देखा जा सकता है !
यूरोप की नारियां श्वेत रंग का परिधान पहनती हैं ! श्वेत रंग शांति का सूचक है ! आशय यह कि विवाहोपरांत दाम्पत्य जीवन में शांति बनी रहे !
अरब , ईराक , ईरान की नारियां हरे रंग की वस्त्र पहनती हैं जो मंगल का प्रतीक है !
वाहन - गृह देवी को ज्योतिर्लक्ष्मी का दर्जा मिला है ! वैदिकी श्रीलक्ष्मी के वाहनों का वर्णन ऋग्वेद में है और उसकी परंपरा का पालन आज भी लोकजीवन में पाया जाता है ! बारात में गृहलक्ष्मी की विदाई के लिए हाथी , घोडा , रथ , पालकी का उपयोग होता है ! आज रथ के स्थान पर मोटरकार , बग्घी आदि का प्रचलन है ! श्रीलक्ष्मी के आगे पीछे घोड़े और रथ होते हैं ! हाथी का नाद सुनकर लक्ष्मी प्रसन्न होती है !
राजलक्ष्मी के लिए गज , अश्व , कोष , रथ , सैन्य आदि नाम जुड़े हुए हैं ! प्राचीन यूनान में नाइट ( अश्वलक्ष्मी ) की पूजा होती थी ! नारियां घोड़े पर सवार होकर नाइट बनती थीं ! नाइट का मुख घोड़े का है और शेष अंग नारी का ! श्रीलक्ष्मी का मुख चन्द्रमा के समान है ' चन्द्रा प्रभासां - यशसा ज्वलतीम् ' ! वह कमल धारण करती हैं ! ' पद्मे स्थित पद्म वर्णा ' !
यूरोप में डायना ( चन्द्रलक्ष्मी ) की पूजा होती थी ! ब्रितानी युवतियां अपने मुख का लेपन करती हैं , ताकि वे डायना का स्वरुप बनें !
श्रीलक्ष्मी लाल कमल धारण करती हैं ! लाल कमल लक्ष्मी का प्रतीक है ! लाल कमलों से आच्छादित सरोवरों को लक्ष्मी का जल महल मानकर दीपदान किया जाता है ! रंगोली में कमल को उकेरा जाता है !
फ़्रांस की फ़्लोरा रंग - बिरंगे फूलों की देवी थीं ! एथेंस की विद्दा देवी मिनर्वा जहाँ अंतर्ध्यान हुई थीं , वहां जैतून उग आया था ! यूनानी नारियां जैतून के फूलों से सजकर मिनर्वा सदृश होती हैं !
दीपावली
दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है ! ह्रदय में भरे हुए अज्ञान और संसार में फैले हुए अंधकार का शमन करने वाला दीपक देवताओं की ज्योतिर्मय शक्ति का प्रतिनिधि है ! इसे भगवान का तेजस्वी रूप माना जाता है ! बीच में एक बड़ा घृत दीपक और उसके चारों ओर ११ - २१ अथवा इससे भी अधिक दीपक प्रज्वलित करें ! दीप जलाने का तात्पर्य है - अपने अंतर को ज्ञान के प्रकाश से भर लेना , जिससे ह्रदय और मन जगमगा उठे ! अंधकार से सतत प्रकाश की ओर बहते रहना ही दीपावली की प्रेरणा है ! वैदिक काल में यज्ञ एक तरह से सांस्कृतिक समारोह थे ! यज्ञ साधारण भी होते थे और असाधारण भी ! कुछ यज्ञों ( अश्वमेघ - राजसूय ) को तो मात्र राजा महाराजा ही कर सकते थे , लेकिन कुछ यज्ञों का संपादन नियमित रूप से आर्य गृहस्थों द्वारा किया जाता था ! गोपद ब्राह्मण के मुताबिक इन यज्ञों में से अग्न्याधान और अग्निहोत्र प्रतिदिन के यज्ञ थे ! अमावस्या और पूर्णिमा के दिन दशपूर्णमास यज्ञ होते थे ! फाल्गुन पूर्णिमा , आषाढ़ पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा को चातुर्मास यज्ञ किये जाते थे ! उत्तरायण - दक्षिणायन के आरम्भ में जो यज्ञ होते थे वे अग्रहायण नवसस्थिष्टि यज्ञ कहलाते थे , जो कालांतर में दीपावली का त्यौहार बन गए ! यज्ञ पर्वों में ही संपन्न होते थे ! पर्व जोड़ या संधि को कहते हैं ! यह संधि पर्व ऋतू और काल संबंधी हुआ करती थी ! सायं - प्रातः , संधि , पक्ष संधि , मास संधि , ऋतू संधि , चातुर्मास संधि , अयन संधि , पर यज्ञ होते थे ! ये संधियाँ पर्व कहाती थी ! यज्ञ समाप्ति पर अवभृथ स्नान होता था ! अब यज्ञों की परिपाटी तो लगभग बंद हो गई हैं , लेकिन पर्वों पर विशेष तीर्थों पर स्नान ध्यान अब भी धर्म - कृत्य माना जाता था ! वैदिक - काल में उत्तरायण और दक्षिणायन का विशद विचार था ! यजुर्वेद में इसका विस्तार से वर्णन है ! दीपावली परिवर्तन से संबंधित त्यौहार है ! इस समय सूर्य दक्षिणायन होते हैं ! साथ ही नयाशस्य धान्य आता है ! इसलिय खील खाई जाती है , तथा दीपोत्सव मनाया जाता है ! दीपावली , जो वास्तव में अयन यज्ञ था , द्रविड़ और आग्न्येय संस्कृतियों से मिलकर श्रीलक्ष्मी का त्यौहार बन गया !
जहाँ होती स्वक्षता - सफाई और पवित्रता श्री लक्ष्मी वहीँ जाती ! घर - समाज - देश चारों ओर हो स्वक्षता और सफाई तो श्रीलक्ष्मी दौड़ी चली आयेगी !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें