रविवार, 15 नवंबर 2015

561 . छठि व्रत ( प्रतिहार षष्ठी )


५६१ 
छठि व्रत ( प्रतिहार षष्ठी )
प्रतिहार पदक दू गोट अर्थ कयल गेल अछि ! एकटा संवादवाहक दोसर सूर्यक रथ ! जहिना नीक समदिया कार्यसाधक होइत अछि तहिना ई व्रत कएला पर लोकक मनोरथक पूर्ति होइत छैक ! दोसर रथ पर जेना सुखसँ बैसल जाइछ तहिना ई व्रत केला सँ सूर्य प्रसन्न होइत छथि !
                                 ई व्रत सप्तमी युक्त षष्ठी करी किन्तु पंचमी युक्त षष्ठी नहीं करी ! सूर्यक पहिल अर्घ  ओहि दिन दी जहिया उदयकालमें कनिओ काल षष्ठी पडैक ! पश्चात सप्तमीओ भ जाइ त छति नहि ! प्रातः काल उदय काल में कनियो काल सप्तमी रहला पर दोसर अर्घ दियनि !
                                 ई सूर्यक पूजा थिक ! साँझ में षष्ठी में पहिल अर्घ आ प्रातःकाल सप्तमीमे दोसर अर्घ देल जाइत अछि ! जे वस्तु साँझ में अर्पित होइत अछि सएह भिनसरमे सेहो ! आरोग्य लाभ एहि व्रतक मुख्य उद्देश्य अछि ! " आरोग्यं भास्करदिच्छेत् " एहि तरहक पुराणक वचन अछि ! तखन सामर्थशाली देवता भक्तक सब मनोरथक पूर्ति करैत छथि ! एहि व्रतमे जाति वा धर्मक बंधन नहि अछि ! महिला पुरुष सभ एहि व्रतक अधिकारी होइत छथि ! देश विदेश में ई व्रत कयल जाइत अछि ! 
                                      ई सूर्यक व्रत अछि ई व्रत कएलासँ व्रतीकेँ सब तरहक मनोरथक पूर्ति होइत अछि ! छठि करयवाला चौठ के नहा क अर्वा - अरवाइन खाइत छथि ! पंचमी दिन दिनभरि उपवास राखि सायंकाल नव चूल्हि पर नव कोहामे अरबा चाउरमे गुड द पायस बनबैत छथि तकरा डालीक अनुसार अथवा एके ठाम उत्सर्ग क अपनो खाइत छथि आ प्रसादो बँटैत छथि ! षष्ठी दिन व्रत करयवाली या वाला सांझुक पहर नित्यक्रिया सं निवृत भ पवित्र वस्त्र पहिर नदी वा पोखरि लग जा सूर्यक मुहे बैसि जतेक गोटाक निमित अर्घ्य देबाक रहैत छनि ततेक डाली , सूप वा ढाकन में अर्घ्य सामिग्री जेना ठकुआ , भुसवा , करा , फल , फूल , पान , सुपारी , धूप , दीप , अंकुरी जुटा लैत छथि ! 
                                   ब्राह्मण आ विधवा कुश तील जल ल आ सधवा दुवि अक्षत ल संकल्प करैत छथि - " नमोअद्य कार्तिक मासीय शुक्ल पक्षीय षष्ठमयां तिथौ ( गोत्रक नाम ल क  ) जनम - जन्मातरार्जित ज्ञाताज्ञात कायिक वाचिक मानसिक सकल पाप क्षयपूर्वक चिरंजीवी पुत्र पौत्रादि गोधन धन्यादि समृद्धि सुख सौभाग्य अवैधव्य सकल कमावाप्ति - काम अद्य प्रातश्च सूर्यायार्धमहं दास्ये !" ई संकल्प करैत छथि ! तखन अक्षत लै - " नमो भगवन सूर्य इहागच्छ इहतिष्ठत " कहि सराइमे अक्षत राखि जल ल - एतानि पाद्यार्घाचमनीय स्नानीय पुनराचमनीय नमो भगवते श्री सूर्यनारायणाय नमः " कहि जल चढ़ा फूलमे लाल चानन लगा , लाल फूल , दूबि , अक्षत पकवान सहित जल ल के सूर्य के देखैत नमोस्तु सूर्याय नमः ! कहि सब डाली उत्सर्ग क घर चलि अबैत छथि आ पुनः सब सामान उत्सर्ग क कथा सुनैत छथि !  
                               छठि व्रत कथा 
एक समय नैमिषारण्य में सर्वशास्त्रज्ञ शौनक मुनि सूतजी सं जिज्ञासा कयलनि कि एहि पृथ्वी पर जे लोक सब तरहक रोग सँ ग्रस्त अछि , ककरो सन्ताने नहि होइत छैक त ककरो पुत्र अल्पायु में मरि जाइत छैक तकरा लोकनिक दुःखक नाश कोना हेतैक ? सूतजी ताहि पर कहब प्रारम्भ कयलनि ! ठीक इएह बात सत्यव्रती भीष्म पुलस्त्य मुनि सं पूछने छलखिन से हमरा बुझल अछि ! ई कथा कहनाहर आ सुननाहर दुनूक पापक विनाश होइत छैक ! प्राचीन काल में एकटा बलवान आ ईर्ष्यालु दुष्ट क्षत्रिय राजा छलाह ! हुनका पूर्व जन्मक पापे कुष्ट भ गेलनि ! हुनका यक्ष्मा रोग सेहो ध लेलकनि ! ऒ एहन जिंदगी सं मरण नीक बुझि गेलाह ! ठीक ओहि समय में एकटा शास्त्रज्ञ , धर्मात्मा , तेजस्वी ब्राह्मण ओहिठाम पहुँचलाह ! राजा हुनका देखि अत्यंत प्रसन्न भेलाह ! हुनक पूर्ण स्वागत सत्कार कएलनि आ विनम्र भाव सं प्रश्न कैलनि जे हम कुष्ट आ यक्ष्मा रोग सं पीडीत छी ! कियो पुत्र विहीन छैथ ! कोनो व्यक्तिक सन्तान नहि जीवैत छनि ! एहि स्त्रीके पति त्यागि देने छैक ! एहि सभ दुःखक कि निदान ? तखन  ओ ब्राह्मण विचारलनि जे सूर्यदेव लोकक सब तरहक पाप के नाश क आरोग्य प्रदान करैत छथि ! तैं ओ राजा के कहलखिन जे आहांलोकनि सूर्यक व्रत करैत जाउ अवश्य कल्याण होएत ! तखन ओ ब्राह्मण हुनकालोकनिक पञ्चमीक खरनासँ ल सप्तमीक प्रातःकालक अर्घ्य ( छठि व्रतक पूर्ण विधान ) बुझौलनि ! ओ सब ओही तरहे कैलनि तँ सभक क्लेश दूर भ गेलैनि ! तकर बाद एकटा जे नीक वंशक ब्राह्मण दरिद्र , मुर्ख अविवाहित छलाह ओ एके वर्ष ई व्रत कयलनि तँ ओ अत्यंत यशस्वी ओ सुखी भ गेलाह ! ओ राजा सेहो जखन पाँच वर्ष व्रत कएलनि तखन हुनको मंत्री सब अपनामे विचारि राजा लग आबि हुनका अपन सभक अगुआ बना क सेना ल विद्रोहीके मारि भगौलनि आ राजा पूर्व जकाँ निष्कंटक राज्य करए लगलाह ! 
                                     अतः जे केओ ई व्रत कएलनि सब मनवांछित फल प्राप्त कएलनि ! जे केओ ई व्रत क कथा सुनि शक्ति अनुसारे कथावाचककेँ दक्षिणा देती तिनका सब तरहक क्लेश दूर भ जेतनी ! 
                                      कथा सुनलाक बाद पूजित देवताके प्रणाम क विसर्जन क ब्राह्मणके दक्षिणा आ प्रशाद द व्रती पारण करथि !  

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