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बेहद तीखे हैं मेरे अनुभव
अविश्वसनीय अकथनीय
सूरज की लाली किरणों ने बताई शाम में
कलि खिली देख भौंरा खिल जाता है
पर प्रतिफल से अनजान
शायद वह है हम सा ही नादान
प्रकृति हाँ है या ना है
उसके एक वसंत - पतझर से
ना ही यह पता चलता है
पर मांझी की पतवार
आश को थामे हुए हूँ
उस एक दिन की तलाश में
बरसों से भटक रहा हूँ
देखूं वो तलाश कब समाप्त होती है
या वो तलाश मुझे ही ख़त्म करती है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १५-०२-१९८०
अविश्वसनीय अकथनीय
सूरज की लाली किरणों ने बताई शाम में
कलि खिली देख भौंरा खिल जाता है
पर प्रतिफल से अनजान
शायद वह है हम सा ही नादान
प्रकृति हाँ है या ना है
उसके एक वसंत - पतझर से
ना ही यह पता चलता है
पर मांझी की पतवार
आश को थामे हुए हूँ
उस एक दिन की तलाश में
बरसों से भटक रहा हूँ
देखूं वो तलाश कब समाप्त होती है
या वो तलाश मुझे ही ख़त्म करती है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १५-०२-१९८०
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