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हम जैसे इन्सान सोंचो को ही भोगते हैं
भोग को भोगना सपनो की बात है
चूँकि आदर्श ही हमारी आत्मा को तृप्त करती है
अतः पेट अन्न से खाली रहता है
खुद पे विश्वास है सबों पे विश्वास कर लेते हैं
परिणामस्वरूप केवल विश्वासघात ही पाते हैं
सुधीर कुमार " सवेरा " १ ८ - ० ३ - १ ९ ८ ४
० ८ - ४ ० pm कोलकाता से समस्तीपुर
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