२ ४ ४ .
मैं आऊंगा
पुनः पुनः आऊंगा
नित नूतन रूप धड़कर
नए नाम से
नए परिचय के साथ
नए रूप में आऊंगा
बस तुम याद रखना
नए रूप में
मुझे पहचान लेना
प्यार अपना
तूँ मत कम करना
खिंच मुझे लायेगा
कहीं भी गर जाऊँगा
बार - बार
तेरे ही दर पर आऊंगा
दर मुझे तेरा
सदा याद रहेगा
जिस दरवाजे पर
निर्मेष नेत्रों से
जो बाट देख रहा होगा
आँचल जिसका
मेरे बिना सुना होगा
बस दर वही मेरा होगा
कदम मेरे
वहीं जायेंगे
जहाँ रूह में
कंपन शेष होगा !
सुधीर कुमार " सवेरा " २ १ - ० ३ - १ ९ ८ ४
१ ० - १ ४ pm कोलकाता से समस्तीपुर
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