ADHURI KAVITA SMRITI
रविवार, 22 फ़रवरी 2015
399 .हर दिन का सूरज डूबता है
३९९
हर दिन का सूरज डूबता है
किसी न किसी घर में
मेरे शहर में
और वह
निकलने से ही पहले
छूट जाता है
प्रखर धुप
निकल पड़ती है
मुरझाये फूल
कलियों से फूट पड़ती है !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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