२३ ८ .
हर रोज
मेरे नाम से
एक ख़त
आता है
लिफाफा
असफलता का होता है
और ख़त का मजमून
निराशा भरा होता है
दर्द की रोसनाई से
गम का फ़साना
लिखा होता है
हर वो ख़त
जो मेरे नाम लिखा होता है
जमा हो गए हैं
ढेड़ सारे ख़त
सुर्ख रंग बैरन
हर रोज
आशा का डाकिया
मेरे मौन
अभिलाषा को तोड़ता हुआ
मेरे भाग्य के नाम
एक अभिशाप लाता है
मेरे ओठों की हंसी
बहुत बदरंग हो गयी है
ज़माने में
जो भी मेरे पास आता है
एक पिन चुभो कर चला जाता है !
सुधीर कुमार " सवेरा " ० २ - ० ५ - ८ ४
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