समस्तीपुर
समस्तीपुर शहर के टुनटुनइया गुमटी
( फुट ओवर ब्रिज ) से सटे मैं हूँ काली पीठ ,
मेरी भव्यता और दिव्यता देखते बनती है ! यह मन्दिर परम्परागत स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है ! यहाँ तीनो महाशक्तियां यथा महाकाली , महालक्ष्मी एवं महासरस्वती विराजमान हैं ! मंदिर में एक बार आने मात्र से परम शांति और शुद्ध मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है ! ऐसी मान्यता है कि यहाँ आनेवाले भक्तों को तीनो महाशक्तियां मिलकर भक्तों का कल्याण करती हैं ! सच्चे मन से जो कुछ भी माँगा जाता है वह मनोरथ अवश्य पूरा होता है ! मंदिर की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है !
मेरे इस मंदिर का निर्माण समस्तीपुर जंक्सन के समीप अवस्थित फुट ओवर ब्रिज के बगल में २ ६ -१ ० - १ ९ ८ २ में मधुबनी जिला के पिलsखवार निवासी
पंडित कैलाश बाबा के तप बल सिद्धि बल और मेरी कृपा से संभव हुआ था !
मेरी स्थापना एक रोचक घटना से जुड़ी है ब्रह्मलीन पंडित कैलाश झा ( लाल बाबा ) आर एम् एस में नौकरी करते थे १ ९ ७ १ में उनका तबादला समस्तीपुर हो गया था ! वे बाल्य अवस्था से ही माँ के परम उपासक थे और अनेको सिद्धियाँ प्राप्त की हुई थी ! वे कुछ समय तक माँ को समस्तीपुर के समशान घाट स्थित माँ काली की भी सेवा कर चुके थे ! परुन्तु वहां कुछ अपरिहार कारणों से जाने आने का उनक क्रम कुछ दिनों से छुट चूका था इसी बीच
१ ९ ८ ० में राखी पूर्णिमा को संध्या काल अपने कार्यालय से आने के उपरांत सदा की भांति हवन करने की इक्षा से हवन सामग्री लेकर अपने सायकिल से प्लेटफार्म होते बाबा थानेश्वर स्थान को जा रहे थे इसी क्रम में इस स्थान के सामने आने पर उनके सायकिल का पैडल सिग्नल के तारों में उलझ गया जिस कारण उन्हें उतरना पड़ा और मेरी प्रेरणा से उनके मन में एक भाव उपजा कि यदि बाबा थानेश्वर स्थान में
हवन करूँगा तो विद्वतजन ना जाने किन अर्थो में लेंगे और शांति के बदले मन में अशांति न उत्पन्न हो जाये इसी उधेरबुन में थे तभी अनायास उनकी नज़र बगल के
पानी टंकी के बिलकुल शांत एकांत परिसर पर उनकी नजर पड़ी तो उनके मन में भाव आया क्यों न यही माँ की आराधना करते हुए हवन संपन्न की जाए , ऊपर माँ गंगा निचे मैं साक्षात शिव सामान हो माँ की आराधना कर लूँ , यह भाव आते ही वो उस नीरव स्थान पे जा हवन संपन्न किया ! वहां से निकलते वक्त उन्हें एक अर्ध विक्षिप्त सी बूढी महिला का दर्शन हुआ उसने कहा
वहां क्यों पूजा कर रहे थे तुम अब से इस पीपल पेड़ के नीचे नित्य अपनी साधना प्रारंभ करो यह कहते हुए उसने एक बहुत ही छोटे से पीपल के पेड़ की और इंगित किया जो उस अंधकार रात्रि में बहुत ही मुश्किल से दिख पा रहा था ! मैं जब तक उसकी बातों पर ठीक से ध्यान दे पता ओ कहीं जा चुकी जिससे वो फिर कभी नहीं मिल पाये ! अभी वो उस परिसर से पूरी तरह निकले भी नहीं थे कि पांच लोग आये और उन्होंने भी ऐसा ही कहा तो उन्होंने उस पेड़ को देखने का प्रयास किया तो चारों तरफ काफी गंदगी थी तो उन्होंने कहा इतनी गंदगी में कैसे संभव है तो उन्होंने कहा आप कल प्रातः काल से आइये सब साफ़ सुथरा मिलेगा ! वो कल जब प्रातः काल वहां पहुंचे तो जगह लिपा पुता काफी साफ़ सुथरा था पर वे लोग उन्हें फिर कभी नहीं मिले ! इसी क्रम में एक रोज एक भक्त ने माँ काली का एक फोटो ला कर दिया और कहा की मैं माँ को इस स्थान पर देखना चाहता हूँ तो बाबा ने कहा माँ से कहो ! उस दिन से यहाँ माँ काली की अनवरत पूजा अर्चना होने लगी ! मेरी इक्षा और भक्तो के सहयोग और बाबा के तप बल से २ ६ - १ ० - १ ९ ८ २ को अर्धरात्रि में मेरी आदमकद प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी ! बाद में मेरी प्रेरणा से १ ९ ९ ९ में महालक्ष्मी तथा २ ० ० ० में महा सरस्वती के आदमकद प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गयी ! मंदिर परिसर में ब्रह्म स्थान , बृहस्पति स्थान , पीपल स्थान , धात्री
स्थान , बलि स्थान , बजरंग स्थान , बर स्थान , शिव स्थान तथा माँ काली के ठीक सामने हवन कुंड है !
वर्ष में चारों नवरात्र यहाँ होते हैं ! चैत्र नवरात्र के अवसर पर शत चंडी यज्ञं का आयोजन होता है ! नवरात्री में नवमी को कुमारी पूजन एवं भोजन का आयोजन होता
है ! प्रतेक गुरुवार और शनिवार की शाम यहाँ भक्ति संगीत की सरिता बहती है ! प्रतेक शनिवार को माँ को खिचड़ी और मंगलवार को खीर का भोग लगा प्रसाद भक्तों के बिच वितरित किया जाता है !
सुधीर कुमार " सवेरा "
२ १ - ० ३ - २ ० १ ३
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