२ ३ ९ .
अरे वो मनु के पुत्रों
मानवता के दूतों
तेरा इतिहास
आज दाग लगाने जा रहा है
अपने तन का हर अंग
नीलाम करने जा रहा है
तेरा धर्म
तेरी रुढी नामक कायरता पर
खिल खिला रहा है
आज तेरे मानव स्वरुप
खंड खंड में
बिकने को जा रहा है
फिर भी तूँ दम साधे है
यह तेरी
अतिशय कापुरुषता की
परिचायक है
तेरा पुर्णतः लोप होने जा रहा है
फिर भी तूँ सोंच रहा है
मैं तो सिर्फ बच जाऊँगा
अरे वो दुर्दिन के दीवानों
होश तूँ अपना संभाल
तेरा अस्तित्व या तेरा लोप
इस बार तूँ इधर है या उधर !
कोल्कता से समस्तीपुर ० २ - ० ५ - १ ९ ८ ४
० ८ - ४ ० pm
सुधीर कुमार " सवेरा "
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