मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

236 . तुम मुझे


236 .

तुम मुझे 
मेरी कवितओं की 
अर्थ की तरह मिली थी 
मेरी कविता 
मेरी आत्मा है 
मेरी भावनाओं 
और विचारों की 
क्रिया - प्रतिक्रिया है 
आज 
जब भोर हुई 
देखा 
मेरी कवितायें 
बेजान निःसहाय पड़ी थी 
और उसका अर्थ 
मेरी मान्यताओं को 
मेरी आत्मा और भावनाओं को 
तोड़ती हुई 
ना जाने 
किस वफ़ा की तलाश में 
मुझसे दूर 
बहुत दूर 
मेरे पहुँच से बाहर 
सोने के पत्ते 
और चाँदी के पेड़ के नीचे 
जा बैठी थी 
मेरी ऐसी दृष्टि कहाँ 
कि उसे देख पाऊँ 
पर वो मुझे देख - देख 
मुस्कुरा रही थी !

सुधीर कुमार " सवेरा "   02-05-1984   08-30 pm 
चित्र गूगल के सौजन्य 

कोई टिप्पणी नहीं: