सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

233 . कहानी अपनी ही


233 .

कहानी अपनी ही 
खामोश कर दी जुबाँ को 
लिखने को बेताब हाथों में 
प्यार ने ही पहना दी हथकड़ी 
हर खुशनुमा लम्हा गुम हो गया 
जब प्यार मुझे ही दुत्कार कर चला गया  !

सुधीर कुमार " सवेरा "     14-03-1984  10-50 pm 

कोई टिप्पणी नहीं: