शनिवार, 18 जुलाई 2015

519 . निराशा

५१९ 
निराशा  
जब मानव चारों ओर से बेसहारा महसूस करने लगता है ! अपने द्वारा किसी भी कार्य का भविष्य में न होने की जब संभावनाएं हो जाती हैं ! मानव अपने आप को अकेला अनाथ आश्रयहीन महसूस करने लगता है तो उसे अपने जीवन को जीने की किंचित मात्र आशा नहीं रहती है तो वह निराश कहलाता है !
ऐसे में भी जो फर्ज कर्तव्य से घिरा हो उसका तो हाल वही समझ सकता है जिसे वैसी परिस्थिति का सामना करना पड़ा हो ! वैसे समय में लोगों को ईश्वर तक पर विश्वास नहीं रहता है ! तब वह यही सोंचने लगता है कि वह दुनियाँ के लिए बेकार है ! और इस तरह की निराशा की स्थिति में व्यक्ति आत्महत्या जैसे जघन्य पाप भी करने को तैयार हो जाता है ! और यहीं पर आकर ओ सबसे बड़ी भूल कर बैठता है ! क्योंकि यह सत्य नहीं है ! सत्य है यह कि मानव जीवन में ' निराशा ' नामक ' शब्द कोई अर्थ नहीं रखता है ! और आशा जो सत्य का प्रतिक है जीवन में कभी नहीं छोड़ना चाहिए ! परंतु क्या यह हो पाता है ? नहीं व्यक्ति तुरंत निराश हो जाता है , केवल आशा से ही निराशा नहीं होता है बल्कि थोड़ी सी भी आशा से विपरीत होने पर जीवन से ही निराश हो जाता है ! पर नहीं मरने पर्यन्त तक आशा की किरण अपने हृदय में बनाये रखें और निराशा नामक झूठ को अपने पास फटकने तक न दें !

क्या होगा जो होना था सो तो हो चूका एक तरफ परिवार का कर्तव्य अपने लिए न सही पर मेरे बाद तो इस परिवार को देखने वाला अभी कोई नहीं है ! पिताजी का भी स्वर्गवास ढाई महीने पूर्व हो चूका है ! पैतृक संपत्ति के नाम पर एक सर पर छोटी सी छत बची है ! परिवार के लोग मेरे बाहर रहने पर क्या खा के रहते होंगे यह तो वही जान सकते हैं ! वह भी एक दिन में अगर एक शाम भी मिल जाता होगा तो बहुत हुआ ! पर मैं भी क्या कर सकता हूँ ! मुझे जो करना चाहिए मैंने सब किया ! पिताजी कितने आशा से ग्रेजुएट कराये थे कि बेटा कुछ बन जायेगा ! पर उन्हें क्या मालूम था कि आज का जमाना सिर्फ पैसे पैरवी वालों का है ! यह मेरे और जीवन की अंतिम इंटरव्यू था ! क्योंकि उम्र नौकरी के लिए मात्र तीन बचे थे ! और मैं असफल हो कर पटना से स्टीमर द्वारा वापस जा रहा था ! 
जहाज के किनारे बैठा हुआ वह युवक चिंतामग्न था , वह अपने भूत , वर्तमान और भविष्य पर गौर कर रहा था ! सारी आशाओं पर पानी फिर चूका था , और सोंच रहा था किस मुंह से घर वापिस जा रहा है ! अपनी माँ छोटी बहन और खुद पत्नी जिसके कुछ अरमान होंगे और जिसने शादी के बाद के कुछ सपने संजोये होंगे ! उसे कौन सा मुंह दिखलायेगा ! उसकी छोटी सी भी बात को वो कभी पूरा नहीं कर सका है ! इन्ही सब बातों के बीच वह उलझा हुआ था ! प्रकृति की खूबसूरती भी उसका मन बहलाने में असफल सिद्ध हो रही थी ! और अंत में दुर्बलता ने उसके मन पर अपना अधिकार जमा लिया , और वह प्रकृति के गोद में सोने के लिए छलांग  लगाकर अपने जीवन से पीछा छुड़ा लेना चाहता था पर उसे यह नहीं मालूम था कि कर्म उसका पीछा नहीं छोड़ सकता कर्तव्य पथ पर उसे अडिग रहना होगा ! ठीक इसी अंतराल में उस जहाज पर एक कर्मचारी वहां से गुजरा और एक निराश युवक को देख कर उसके ह्रदय में उसके प्रति हमदर्दी जगी और उसने उसके पास बैठकर उससे पूछा ! ऐ युवक तुम युवा होकर इतने निराशपूर्ण मुद्रा में क्यों हो ! क्या करोगे जानकर ? युवक का यह संक्षिप्त उत्तर था ! एक इंसान के नाते अगर मैं तुम्हारा दुःख थोड़ा सा भी कम कर सका तो मन में शांति की मात्रा में वृद्धि होगी ! अतएव तुम बिना किसी संकोच एवम झिझक के अपनी बात कहो ! कर्मचारी ने युवक से कहा ! इसपर युवक ने आद्योपांत सारी बातें उनके समक्ष रखते हुए कहा कि अब मात्र तीन दिन मेरी नौकरी की बची है ! इन तीन दिनों के अंदर अगर कुछ हो सका तो ठीक अन्यथा मेरे लिए सिवाय इसके और कोई चारा नहीं है ! आगे आप कहें पर आप ही क्या कीजियेगा व्यर्थ में आपको मैंने तकलीफ दी थी इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ ! इसपे कर्मचारी ने कहा इतना निराश तो मनुष्य को कभी नहीं होना चाहिए कम से कम उपरवाले पे भरोसा रखो ! एक बात कहो क्या तुम कुछ दिन के लिए कुली का काम कर सकते हो ? कल कुली की बहाली है ! युवक ने कहा इस स्थिति पर पहुँचने के बाद भी आप पूछते हैं ! मैं इस कार्य को सहर्ष स्वीकार करूँगा ! पर बात यह है की बहाल करने वाला एक जाति प्रेमी  बाबू है और वह दूसरे जात को काम देना बिलकुल नहीं चाहता है ! पर मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि तुम्हे काम मिल जाये फिर तो आगे प्रमोशन होता रहेगा ! यह कह कर वह कर्मचारी उसे अपने साथ रख लिया ! कल होकर वह  बाबू से सब  बातें कहा और अनुरोध किया कि उसे रख लें ! इस पर उन महाशय ने कहा वह ग्रेजुएट है यह काम क्या वह कर सकेगा ! वाह री दुनिया तुम उसे ग्रेजुएट होने के बाबजूद भी ये कुली का काम देने में हिचक रहे हो जबकि वह बेचारा ग्रेजुएट होकर भी इस काम को मिलने की उम्मीद भी तुम्हारे जैसे लोगों के कारण खो चूका है ! पर किसी तरह उसे कह सुनकर उस कर्मचारी ने उस युवक को काम पर रखवा दिया ! इस काम से उस युवक को मात्र पचास रूपये महीना मिलता था और पटना जैसे बड़े शहर में रहना और घर पर भी कुछ रूपये भेजना असंभव सा है ! पर उस कर्मचारी ने उसकी तात्कालिक ये समस्याऐं भी हल कर दी ! क्योंकि उसने उसका ट्यूशन एक सेठ जी  के यहाँ पकड़ा दिया ! जिसके कारण उसके खाने पीने की समस्या हल हो गयी ! एक दूसरे सेठ  के यहाँ रहने की व्यवस्था पर ट्यूशन रखवा दिया ! इस तरह उसकी सारी समस्याएं हल हो गयी ! धीरे - धीरे प्रमोशन पाकर उसी जहाज पर एक आफिसर की हैसियत से वर्तमान में काम कर रहा है ! अपने पुरे परिवार के साथ ख़ुशी पूर्वक जीवन बिता रहा है ! 
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह उस तरह के प्रत्येक युवक को सद्बुद्धि प्रदान करे और आशा न त्यागने दे !


सुधीर कुमार ' सवेरा '     

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