५१३ माँ तेरे लाखों बेटे मोह ममता मुझको लपेटे क्यों न देती दर्शन क्यों न होती हो प्रसन्न एक अकेला दोष बहुतेरा अपनी ममता का दे सहारा सबके मन की प्यास बुझाती क्यों न मुझको दर्शन देती दुनियाँ बहुत बड़ी है माया से भरी परी है भर कर मन में ज्ञान कर दे मेरा कल्याण !
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