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स्वच्छ निर्मल शीतल मलय बहता जहाँ मंद - मंद
स्वर्ग सा वातावरण गर्जन करता जहाँ वसंत
जहाँ मोह मिटता , भय निर्मूल होता
राग द्वेष होते क्षत विक्षत
देहाभिमान ध्वस्त होता पत्रवत
काल पे भी अंकुश
कोई नहीं भयाकुल
हर्ष नहीं शोक नहीं
भला नहीं बुरा नहीं
अमीर नहीं गरीब नहीं
शाश्वत सनातन
परम शांति
ज्योति पीठ
गहन गंभीर
काली पीठ !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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