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ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज
ये बात
हो न हो खास
पर आज
तूँ है बेहद मेरे पास
जो कफ़न
ज़माने ने जहाँ रखी
वो थी मेरे विश्वास की लाश
पर तूँ तो है
किसी मकबरे पर
किसी के स्नेह और विश्वास की ताज
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज
कैद मुझे कर लो
उन चहार दिवारियों के बीच
दीवारें जिसकी यादों को मेरे
न आने दे करीब
सोंचा था जो कल
हो न सका वो आज
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज
ऐसी कोई भी बात
आती नहीं मुझे नजर
पाकर कैसी भी चीज
भुला जो पाऊँ
तुझे किसी भी पल
बिन ऊषा
कैसे ' सवेरा ' हो आज
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३१ - १० - १९९५
९ - ५० pm
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज
ये बात
हो न हो खास
पर आज
तूँ है बेहद मेरे पास
जो कफ़न
ज़माने ने जहाँ रखी
वो थी मेरे विश्वास की लाश
पर तूँ तो है
किसी मकबरे पर
किसी के स्नेह और विश्वास की ताज
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज
कैद मुझे कर लो
उन चहार दिवारियों के बीच
दीवारें जिसकी यादों को मेरे
न आने दे करीब
सोंचा था जो कल
हो न सका वो आज
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज
ऐसी कोई भी बात
आती नहीं मुझे नजर
पाकर कैसी भी चीज
भुला जो पाऊँ
तुझे किसी भी पल
बिन ऊषा
कैसे ' सवेरा ' हो आज
ऐ ताज
मैंने भी तुझे देखा आज !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३१ - १० - १९९५
९ - ५० pm
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