59.
लहर - लहर लहराती शीतलहरी आई
चुपके - चुपके साथ - साथ
बूंदा - बांदी लाई
कन - कन करती
पछुवयिया भी बही
बच्चे बूढों की
हड्डी कंपाती चली
थर - थर पत्ते भी हैं काँप रहे
सिमट - सिमट कर
कुत्ते भी अलाव के पास बैठ रहे
श्रृष्टि की अनमोल कृति लावारिस कुत्तों से परास्त हो
दूर छिटक कर ही
आग के होने की अनुभूति से
अपने तन को सेंक रहे
कुछ मस्नदों में भी ठिठुर रहे
कुछ चिथरों में भी विहंस रहे
लहर - लहर -----------------
ठिठुरती - ठिठुरती सर्दी लायी
आग को अमृत बनायी
' राम ' चौक पर बैठ घुर सेंक रहे
' रावण ' लंका में बैठा हीटर ताप रहा
लहर - लहर क्या शीतलहरी आई
आलसी के जानो पे बन आई
कर्मठों की आन पर बन आई
लहर - लहर लहराती शीतलहरी आई !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' - १६ -१२-१९८३ - समस्तीपुर -
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