६२.
नया सूरज
जो उग रहा है
प्रकाशहीन
और बेहद काला है
सो रहा है
जनसमुदाय
भाग्य का जिसका
हो रहा बंटवारा है
मानवता
ना जाने कहाँ
शायद हर जगह वहां
मेरे जैसा दिल
बसता होगा जहां
सीत्कार रही है
ताकत का पुतला
कर रहा इन्तजार है
समझ भी रहा है
उसका उजला सूरज
उगनेवाला नहीं है
काले सूरज की कालिमा
गहरी घनी होती जा रही है
मानव समुदाय मात्र
कालिमा की चाहत लिए हुए है
ढंका रहे जिसमे
उसके दामन के काले धब्बे
उजाला
मेरे पास
अपवाद्ग्रस्त मनुष्य के पास
जाकर
उसे सता रही है
फिर भी उसे उजाले की
ऐसी तमन्ना है
जैसे बच्चों में
प्यार की जो
एक भूख होती है
दूध , मिठाई और खिलौने से
कंही अधिक मादक होती है
उजाले की तरह
माँ के गोद में
संसार की सारी निधि
उसे फीकी लगती है
भविष्य के गर्भ में
सूरज की रूप छिपी है
देखें नया सूरज
कौन सा आता है
किसके लिए क्या लाता है ?
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १४-०३-१९८४. ८-४५.pm -कोलकाता -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें