( मेरे पुत्र उज्जवल सुमित के बचपन का फोटो )
५२१
" अपनी खोज "
२६ - ०९ - १९७७
पुरे ब्रह्माण्ड में अभी तक जानकार चीजों में सबसे तेज गति वाली चीज मन है ! इस सत्यता को आप जब चाहें तब आजमा सकते हैं ! इस मन में जब ज्वार भाटा उठता है तो कोई परिणाम उपस्थित होता है !
कुछ ऐसी ही उथल - पुथल मेरे मन में उठ रही थी ! अब सर्वप्रथम मैं आपको अपने से परिचित कराता हूँ ! सामान्य कद काठी छोटे - छोटे बाल स्टालिन टाइप दाढ़ी मूंछें ! गेहुंआ रंग चेहरे पर हमेशा व्यंग मुस्कान दूसरे की बेबसी और गलती को समझते हुए हमेशा हंसने वाला परन्तु हंसाने की क्षमता से रहित व्यवहार से थोड़ी बहुत विश्वविद्यालय की क्षमता प्रकट होती दिखती है ! मुझमे और कुछ असाधारण तो नहीं परन्तु मेरे विचार जरूर असाधारण हैं ! मुझे किसी चीज में आशक्ति नहीं ! इतने गुणों अवगुणों से संपन्न मैं कुछ स्थिति एवँ अपनी बुद्धि प्रखरता पर घमंड रहने के कारण , वैसे मैं बुद्धि प्रखरता का सर्वथा अभाव महसूस करता है , अतएव इसे जिद्दिपना ही कहना शायद उचित होगा इसी कारण मैं इंटर की परीक्षा समाप्ति के प्रातः २३ - ०९ - १९७७ को सुबह ८ बजकर १४ मिनट पर प्रातः काल का कलेवा माँर भात जो गरीबी महाराज मुझे देने का कष्ट करते हैं , वो कर माता - पिता ईश्वर को मन ही मन प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर अपने मंजिल बनारस को घर से चुप - चाप सिद्धार्थ की तरह वैराग्य की भावना से ओत - प्रोत हो निकल पड़ा , पास में जो भी कुछ पैसे थे उसे घर में ही छोड़ चला ! पहले मैंने सोंचा था की मंजिल तक की दुरी पैदल तय करेगा परन्तु वास्तविकता से मुलाकात नहीं हुई थी इस हेतु मैं चला और सर्वप्रथम थानेश्वर मंदिर पहुँच कर बाबा भोलेनाथ से आशीर्वाद ले चल पड़ा समस्तीपुर से मुसरीघरारी की ओर उसे रास्ते में उमेश एवं ओमप्रकाश राज जो मेरे सहपाठी थे मिले इनसे निपटकर आगे बढ़ा और मुसरीघरारी तक की दस किलोमीटर की दुरी एक घंटा पैंतालीस मिनट में तय कर समस्तीपुर को प्रणाम कर लखनऊ का मार्ग नेशनल हाईवे पकड़ चल पड़ा ! मुझे जाना तो वाराणसी था परन्तु पूरी जानकारी वहां की नहीं थी और न ही मुझे यह मालूम था कि वह रोड जिस पर वह चला जा रहा था उसकी मंजिल को नहीं पहुँचता !
आदमी जिस काम के लिए दृढ संकल्प कर ले वह उसे पूरा कर ही दम लेता है ! ढोली पहुँचते चलने से मेरी हालत बदतर हो गयी थी , मैं बेचारा कभी भी चलने का लुत्फ़ उठाया होता तब न मुझे सत्य की जानकारी रहती मुझे लग रहा था जैसे पैर मेरे नहीं पैर के जगह पर कोई पत्थर का शिला ढो रहा हूँ ! फिर भी मैं घिसटते - घिसटते ढोली स्टेशन पर ४ - ०० बजे पहुंचा ! उस समय वहाँ के B . D . O का घेराव कुछ मजदुर किये हुए थे ! घेराव के पश्चात उन लोगों की मीटिंग मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि में स्टेशन के बाहर स्थित प्रांगण में संपन्न हुई ! उनके पुरे भाषण का निचोड़ मेरे अनुसार यह था की आपने इंदिरा के अत्याचार को देख लिया है और अपना एक लाख से भी ज्यादा कीमती वोट को फिर से एक बार जनता पार्टी नामक कूड़ेदान में डाल दिया ! अतः उद्धार का अब केवल एक ही रास्ता है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में देश को सौंप दे ! जितना समय उन्होंने भाषण देकर व्यर्थ में अपना और दूसरों का नष्ट किया उतने देर में यदि उनको जीवकोपार्जन के साधन एवं व्यवस्थित ढंग से अपना और समाज के काम को करने अथवा सहयोग प्रदान करने के बारे में बतलाते तो भारत के किसी कोने का थोड़ा सा भी भविष्य उज्जवल दिख पड़ता परन्तु हाय रे भारत के गरीब मजदुर तुम बहुत भोले हो तुम्हे न अपना और न देश के भलाई के बारे में थोड़ी सी भी अक्ल खर्च कर समझने की शक्ति है ! जिसका परिणाम है कि तुम वहीँ के वहीँ हो और थोड़ी सी बुद्धि रखने वाला तुम्हे अपने वश में किये रहता है ! इन सब बातों को खबर में रखते हुए मैं शाम की ट्रेन पकड़ मुजफ्फरपुर आया और तुरंत फिर मुजफ्फरपुर से सोनपुर चल दिया ! मुजफ्फरपुर तक तो कोई दुर्घटना पेश नहीं आई परन्तु मुजफ्फरपुर से ट्रेन खुलने के बाद मैं एक डिब्बे के दरवाजे के पीछे बैठ गया एवं कान में ठंढ लगने के कारण कानों को रुमाल से बाँध कर सो गया !
एक रुमाल ही तो शरीर से अलग की संपत्ति लेकर मैं घर से चला था ! मुजफ्फरपुर के एक दो जंक्शन के बाद , चूँकि वह एक्सप्रेस ट्रेन थी अतः प्रायः जंक्शन पर ही रुका करती थी ! चलती ट्रेन में जब मैं उनींदी सी अवस्था में था की एक बंदूकधारी पुलिस आकर मुझे जगाया और पूछा कहाँ जा रहे हो ? सोनपुर किस काम से , उससे भी आगे वाराणसी तक जाना है ! टिकट है ? नहीं ! तब तो नहीं जा पाओगे , चल उठ फिर से मैं तुमको वापस मुजफ्फरपुर भेज दूंगा और मेरा कॉलर पकड़ कर उठाया और डिब्बे के अंतिम छोड़ में एक लड़के के निगरानी में बैठा दिया और उसे कहा साले अगर यह भागा तो तुमको अंदर कर देंगे , अगले स्टेशन पर फिर उसके साथी आये और फिर वही सवाल पूछा और वही जवाब मिला तदुपरांत वह एक दूसरे पुलिस के पास जो एक दूसरे डिब्बे में था के संरक्षण में सौंप कर चला गया ! सोनपुर आया वह पुलिस भी उतरा और उसने सामान भी उतारी परन्तु उसकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं था अंततः मैं भी सबसे पीछे उतर प्लेटफार्म की ओर चल दिया क्योंकि उस समय मुझे आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी ! सो मैं आकर एक बेंच पर आराम करने लगा ! कुछ क्षण बाद एक भद्र पुरुष आकर बैठ गए और समाचार पत्र पढ़ने लगे पर मानव मन की जो आदत है उसके अनुसार उन्होंने मुझसे परिचय लिया एवं पूछा कहाँ जाना है ? उत्तर मिला वाराणसी ! फिर ट्रेन आयी और वह डिब्बे में चढ़ा परन्तु उसके न उठने पर उसने आकर पूछा टिकट नहीं है ? नहीं ! तो कोई बात नहीं है चलो मैं रेलवे में काम करता हूँ और सोनपुर छपरा बराबर आता जाता हूँ और स्टाफ मुझे पहचानते हैं ! उसके आश्वासन पर वह युवक उसके साथ चल दिया ! उसने अपना नाम B. Ahmad. बतलाया ! रास्ते में T . T के आने पर उसने उसको अपना साथी बतलाया ! छपरा आने के बाद उसने मुझ से बहुत आग्रह किया कि वह चलकर उसके साथ खाना खा ले और सवेरे वाली ट्रेन से भेज देने का आश्वासन दिया ! जात - पात नहीं मानते हुए भी मैं उनके साथ खाना खाने से इंकार कर दिया परन्तु सवेरे जाने वाली बात स्वीकार कर लिया !
दूसरे रोज वह मैं १० - ५५ में खुलने वाली ट्रेन से वाराणसी ५ बजे २४ - ०९ - १९७७ को पहुँच गया , रास्ते में कोई खास दिक्कत नहीं हुई ! वहां पहुँचने के बाद जहाँ तक मेरा शरीर साथ दिया घूमता रहा और शाम होते - होते गंगा किनारे एक मंदिर के प्रांगण में एक विशाल वट वृक्ष था उसके नीचे अपना आसन जमा दिया और सांय कालीन पूजा के बाद जो प्रसाद मिला उसे ग्रहण कर उस एकांत और अकेले वृक्ष के नीचे सो गया ! प्रातः एक शिक्षक ब्राह्मण जो प्रत्येक दिन प्रातः गंगा स्नान को गंगा जी आते थे आये और उन्होंने मुझसे परिचय पूछा और कुछ देर के वार्तालाप के बाद वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझको अपने साथ अपने आश्रम ले जाने की जिद करने लगे , परन्तु मैंने कहा एक आश्रम को छोड़ कर आया हूँ कि कोई सिद्ध महात्मा से भेंट हो जाये तो संसार को त्याग सच्चे ज्ञान के प्राप्ति में लग जाऊं परन्तु लगता है यह चाह अभी शायद पूरी नहीं होगी ? दूसरे दिन भी मंदिर के प्रसाद का ही सहारा रहा ! फिर ज्यादा इसलिए नहीं घूम सका कि पैर तो पहले ही जवाब दे चूका था पेट भी भट्ठी बना हुआ था और थूक घोंटने में भी लगता था जैसे लोहे का बड़ा सा गोला जबरदस्ती ठूंस रहा हूँ ! कल हो के सवेरे वाली ट्रेन पकड़ मैं छपरा की ओर चल दिया ! उस दिन मुझे दो तीन बातों से साक्षात्कार हुआ जो कि केवल मैं ही समझ सकता था ! तीसरी बात जो सर्वविदित है कि झूठ नहीं बोलना चाहिए इसका भी परिणाम उस दिन मेरे नजरों के सामने आया ! वे दिन शायद मेरे लिए स्मरणीय दिन रहेगा ! क्योंकि स्मरणीय दिन वही होता है जिस दिन कुछ असाधारण घटना घटित होती है !
बनारस से बलिया तक के अंतराल में उस गाड़ी में एक ही टी टी थे ! मैं उससे बचने के लिए प्रत्येक जगह जहाँ गाड़ी रूकती उससे पहले उतर जाता , इस तरह से इससे बचते हुए बलिया आया ! यहाँ आकर उसकी ड्यूटी ख़त्म हो गयी थी और यहाँ से दो टी. टी सवार हो रहे थे ! यहाँ गाड़ी अधिक देर तक रूकती है ! अतः मैं एक बेंच पर आकर बैठ गया था ! उसी बेंच पर एक टी. टी आकर बैठ गए और हमारे बगल में बैठे हुए व्यक्ति से बात करने लगे और जिन लोगों को बिना टिकट के जाना था उनसे वह कुछ - कुछ पैसे ले रहा था ! गाड़ी खुली तो मैं भी दोनों टी. टी से बचता हुआ एक डिब्बे में चढ़ गया और पिछली ही बार की तरह करने लगा परन्तु एक जगह मुझसे गलती हो गयी ! दो तीन स्टेशन के बाद मैं एक टी. टी के चढ़ने के बाद अंतिम डिब्बे में चढ़ गया ! शायद दूसरे टी. टी को मुझ पे कुछ शक हो गया था और मुझको भी लगा कि शायद वह इसी डिब्बे में आएगा ! यह सोंच कर मैं पिछले दरवाजे से उतरने के लिए तत्तपर हो गया और वह इसी उधेड़बुन में था कि वह टी. टी मेरे सर पर सवार हो गया और कॉलर पकड़ते हुए खिंचा और पूछा टिकट दिखाओ ? टिकट तो नहीं है , दूसरे टी. टी की आदत जो उस युवक ने बलिया में देख लिया था उसके विश्वास पर उसने कहा मैंने दूसरे टी. टी साहब को कह दिया है ! यह कहने से उसने युवक को छोड़ दिया ! और दूसरे यात्रियों को चेक करने लगा ! परन्तु मुझको ह्रदय में डर था कहीं यह उस टी टी के पास न ले जाये ! आखिर वही हुआ जब दूसरा स्टेशन नजदीक आने लगा तो वह आया और कहने लगा , हमको तुम पर शक है इसलिए चलो और उनसे कहवाओ ! फिर युवक को पकडे रहा और दूसरे स्टेशन पर आकर उसने टी टी के हवाले कर दिया ! उस टी टी ने युवक से पूछा पर गुस्सा करते हुए कहा जल्दी भाड़ा लाओ वर्ना जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी ! छपड़ा चलिए वहां दूंगा पर उसे विश्वास नहीं हुआ और गेट पर खड़े टी टी से आकर कहने लगा इसे चालान कीजिये इस पर उस गेटकी ने कहा भाड़ा दे दो वर्ना जुर्माना २३ - ०० रु हो जायेगा ! वह युवक को लेकर एक डिब्बे में बैठ गया और पूछा क्या नाम है ? सुधीर कुमार झा ! पिता का नाम श्री कैलाश झा ! कौन काम करते हैं ? आर एम् एस में ! कहाँ ? समस्तीपुर में ! फिर छपरा में कौन हैं जो पैसा देगा ? एक जान पहचान के अहमद साहब हैं ! इंजीनियरिंग विभाग में उनसे ! वो कौन हैं ? जान पहचान के हैं ! वाह तुम झा और पहचान मुस्लिम से ! ज्यादा फ्राड मत बनो ! यह कहकर वह चुप हो गया ! अगले स्टेशन पर अपने साथ उस युवक को उतारा , कुछ लोग घेर कर खड़े हो गए ! टी टी ने कहा अभी नया नया है बहुत झांसा दे रहा है ! कहता है ब्राह्मण है ! अच्छा गोत्र क्या है ? शांडिल्य , उसका चमचा बोला ई गोत्र क्या होता है ? यह तो यह ठीक कह रहा है ! मुझे तो लगा यह मुस्लिम है ! टी टी ने कहा नहीं , है ब्राह्मण ही ! फिर मेरी ओर मुखातिब हो कर कहने लगे , इसी ट्रेन की एक बार की बात है एक व्यक्ति को पकड़ा था , वह था तो धोबी पर उससे पूछा कौन जात हो तो उसने कहा क्षत्री ! हमने कहा क्षत्री लगते तो नहीं हो ! कौन क्षत्री हो उसने कहा पछाडन क्षत्री क्योंकि वह कपडे से पानी को पछाड़ता था !
तुम कौन ब्राह्मण हो ? मैथिल ब्राह्मण हूँ ! मछली खाते होगे ? अच्छा आओ हमारे साथ बांयी तरफ वाली बोगी में बैठो और मेरे साथ वह भी बैठ गया ! युवक खिड़की होकर बाहर का दृश्य देखने लगा ! गाड़ी खुल चुकी थी ! अगला स्टेशन छपड़ा ही था ! टी टी ने अपने चमचे से पूछा गोपाल इसको कौन सजा दें ! देखते हैं मुंह छुपाये है ! नजर मिलाने की हिम्मत नहीं है ! इस वाक्य को सुनकर मुझे क्रोध आया ! उस समय मैं खिड़की से बाहर के दृश्य को देख कर प्रकृत पर गौर कर प्रकृत की प्रकृति पर गौर कर रहा था ! मेरे साथ जो घटना चक्र चल रहा था उसके बारे में मेरे चेहरे पर कोई हर्ष- विषाद विदित नहीं हो रहा था ! क्योंकि उसके परिणाम को भोगने के लिए तैयार था ! जब मुझे परिणाम से डर नहीं था तो चिंता किस बात की होती ? वह इन लोगों की ओर देखने लगा ! टी टी ने मेरे दाहिनी हाथ का अंगूठा देखा और कहा अभी शुरुआत है ! कौन गुरु है तुम्हारा ? कैसा गुरु ? कोई भी काम शुरू करता है तो उसका कोई गुरु होता है ! कौन काम ? मैं कोई काम नहीं करता ! तो तुमको बलिया से छपड़ा तक का रखवाली करने का ठेका मिला है ! कुछ तो करते होगे ? क्या करते होगे ? क्या करते हो ? पढ़ते हैं ! टी टी के चेहरे पे अविश्वास की रेखा गहरी हो गयी ! किस क्लास में पढ़ते हो ? I . Sc . में ! I . Sc . का मतलब क्या होता है ? जवाब सुनकर कुछ संतोष सा उसके चेहरे पर झलकने लगा ! आर्किमिडिज़ का सिद्धांत क्या है ? उसके पश्चात तो उसने प्रश्नो का ताँता सा लगा दिया और उस युवक का भाग्य शायद कुछ तेज था ! क्योंकि उसकी बुद्धि कुंठित नहीं हुई थी और वह हर प्रश्न का समुचित जवाब दे रहा था ! यूरेका शब्द का क्या अर्थ है ? किसने कहा था ! इसका इतिहास वह वहां बैठे अन्य लोगों को सुनाने लगा ! फिर उस युवक की ओर हो पूछा गुप्त ताप की क्या परिभाषा है ? इसकी क्या इकाई है ? एक छोटी सी सुई डूब जाती है परन्तु इतना बड़ा जहाज नहीं डूबता ? घनत्व की परिभाषा क्या है ? रेल के दो पटरियों के बीच खाली जगह क्यों छोड़ी जाती है ? जो सवाल का जवाब जल्द - जल्द दे दे उसे क्या कहते हैं ? सुराही का पानी क्यों ठंढा रहता है ? आदि - आदि प्रश्नो को उसने पूछा ! इन सारे प्रश्नो का मैं ने सही - सही उत्तर दिया ! इस बीच उसने मेरी दो बार पीठ थपथपा कर शाबाशी दी और कहा तुमको पहले कहना चाहिए था कि मैं छात्र हूँ पैसा नहीं रहने के कारण टिकट नहीं कटा सका तो मैं तुमको इतना कष्ट नहीं देता ! मैं मानता हूँ गरीबी एक अभिशाप है ! मैं फटे कपडे पर उतना मार्क नहीं करता ! मुझे पहले ही शक हो रहा था कि तुम एक अच्छे लड़के हो फिर भी तुमने झूठ बोलकर गलती की जिसके कारण तुम्हे और मुझे भी परेशानी हुई ! तुम्हे आदमी पहचान कर बात करना चाहिए था ! मैंने कहा सब तो आपके जैसे विचार वाले नहीं होते हैं ! फिर आपका अनुभव उम्र के अनुसार ज्यादा है ! आप रेलवे में हैं हमेशा विचित्र लोगों के संपर्क में रहते हैं इसलिए आप जितनी जल्दी लोगों को पहचानियेगा उतनी जल्दी मैं नहीं ! फिर भी मैं अपनी गलती के लिए क्षमा चाहता हूँ ! और आपकी इस मेहरबानी के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद ! टी टी कुछ भावावेश में आ गया था उसने कहा भाग्य का मारा हूँ जो रेलवे की खाक छान रहा हूँ वर्ना मैं भी आज कहीं प्रोफ़ेसर होता !
हाँ आपको होना भी चाहिए था मैंने कहा ! वहाँ बैठे दूसरे लोगों के भी नजरों में जहाँ मेरे लिए दिल में नफरत एवं आँखों में घृणा थी वहां अब सहानुभूति एवं आदर झलक रहा था ! एक व्यक्ति ने पूछा आप कहाँ पढ़ते हैं ? समस्तीपुर कॉलेज समस्तीपुर ! टी टी साहब ने कहा तुम समस्तीपुर जाओगे यह जनता ट्रेन लगी हुई है इससे सोनपुर चले जाओ वहां से मुजफ्फरपुर और फिर वहां से नार्थ बिहार पकड़ कर समस्तीपुर चले जाना , इस रास्ते में कहीं चेकिंग नहीं है ! रास्ता साफ है ! यह कह वह चला गया ! छपड़ा आ चूका था मैं भी उतर पड़ा ! मेरे ह्रदय में उस टी टी के लिए आदर का भाव था और मैंने उसे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद दिया और उसके कहे अनुसार मुजफ्फरपुर २५ - ०९ - १९७७ के रात में ८ - ३० पर उतरा और नार्थ बिहार में आर. एम . एस के बोगी में बाबूजी के साथी स्टाफ को प्रणाम कर अपना परिचय दे बैठ गया और सकुशल समस्तीपुर उतर कर अपने डेरे पर पहुँच गया ! समस्तीपुर स्टेशन से डेरे तक पहुँचने में केवल एक घटना घटी कि मेरा चप्पल टूट गया जिसे मैं किसी तरह ढो कर डेरे तक लाया ! जहाँ मेरे परिवार वाले बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे !
इस तरह मेरे मन में उठे प्रश्नों के उत्तर मिल गए !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
५२१
" अपनी खोज "
२६ - ०९ - १९७७
पुरे ब्रह्माण्ड में अभी तक जानकार चीजों में सबसे तेज गति वाली चीज मन है ! इस सत्यता को आप जब चाहें तब आजमा सकते हैं ! इस मन में जब ज्वार भाटा उठता है तो कोई परिणाम उपस्थित होता है !
कुछ ऐसी ही उथल - पुथल मेरे मन में उठ रही थी ! अब सर्वप्रथम मैं आपको अपने से परिचित कराता हूँ ! सामान्य कद काठी छोटे - छोटे बाल स्टालिन टाइप दाढ़ी मूंछें ! गेहुंआ रंग चेहरे पर हमेशा व्यंग मुस्कान दूसरे की बेबसी और गलती को समझते हुए हमेशा हंसने वाला परन्तु हंसाने की क्षमता से रहित व्यवहार से थोड़ी बहुत विश्वविद्यालय की क्षमता प्रकट होती दिखती है ! मुझमे और कुछ असाधारण तो नहीं परन्तु मेरे विचार जरूर असाधारण हैं ! मुझे किसी चीज में आशक्ति नहीं ! इतने गुणों अवगुणों से संपन्न मैं कुछ स्थिति एवँ अपनी बुद्धि प्रखरता पर घमंड रहने के कारण , वैसे मैं बुद्धि प्रखरता का सर्वथा अभाव महसूस करता है , अतएव इसे जिद्दिपना ही कहना शायद उचित होगा इसी कारण मैं इंटर की परीक्षा समाप्ति के प्रातः २३ - ०९ - १९७७ को सुबह ८ बजकर १४ मिनट पर प्रातः काल का कलेवा माँर भात जो गरीबी महाराज मुझे देने का कष्ट करते हैं , वो कर माता - पिता ईश्वर को मन ही मन प्रणाम कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर अपने मंजिल बनारस को घर से चुप - चाप सिद्धार्थ की तरह वैराग्य की भावना से ओत - प्रोत हो निकल पड़ा , पास में जो भी कुछ पैसे थे उसे घर में ही छोड़ चला ! पहले मैंने सोंचा था की मंजिल तक की दुरी पैदल तय करेगा परन्तु वास्तविकता से मुलाकात नहीं हुई थी इस हेतु मैं चला और सर्वप्रथम थानेश्वर मंदिर पहुँच कर बाबा भोलेनाथ से आशीर्वाद ले चल पड़ा समस्तीपुर से मुसरीघरारी की ओर उसे रास्ते में उमेश एवं ओमप्रकाश राज जो मेरे सहपाठी थे मिले इनसे निपटकर आगे बढ़ा और मुसरीघरारी तक की दस किलोमीटर की दुरी एक घंटा पैंतालीस मिनट में तय कर समस्तीपुर को प्रणाम कर लखनऊ का मार्ग नेशनल हाईवे पकड़ चल पड़ा ! मुझे जाना तो वाराणसी था परन्तु पूरी जानकारी वहां की नहीं थी और न ही मुझे यह मालूम था कि वह रोड जिस पर वह चला जा रहा था उसकी मंजिल को नहीं पहुँचता !
आदमी जिस काम के लिए दृढ संकल्प कर ले वह उसे पूरा कर ही दम लेता है ! ढोली पहुँचते चलने से मेरी हालत बदतर हो गयी थी , मैं बेचारा कभी भी चलने का लुत्फ़ उठाया होता तब न मुझे सत्य की जानकारी रहती मुझे लग रहा था जैसे पैर मेरे नहीं पैर के जगह पर कोई पत्थर का शिला ढो रहा हूँ ! फिर भी मैं घिसटते - घिसटते ढोली स्टेशन पर ४ - ०० बजे पहुंचा ! उस समय वहाँ के B . D . O का घेराव कुछ मजदुर किये हुए थे ! घेराव के पश्चात उन लोगों की मीटिंग मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिनिधि में स्टेशन के बाहर स्थित प्रांगण में संपन्न हुई ! उनके पुरे भाषण का निचोड़ मेरे अनुसार यह था की आपने इंदिरा के अत्याचार को देख लिया है और अपना एक लाख से भी ज्यादा कीमती वोट को फिर से एक बार जनता पार्टी नामक कूड़ेदान में डाल दिया ! अतः उद्धार का अब केवल एक ही रास्ता है कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों में देश को सौंप दे ! जितना समय उन्होंने भाषण देकर व्यर्थ में अपना और दूसरों का नष्ट किया उतने देर में यदि उनको जीवकोपार्जन के साधन एवं व्यवस्थित ढंग से अपना और समाज के काम को करने अथवा सहयोग प्रदान करने के बारे में बतलाते तो भारत के किसी कोने का थोड़ा सा भी भविष्य उज्जवल दिख पड़ता परन्तु हाय रे भारत के गरीब मजदुर तुम बहुत भोले हो तुम्हे न अपना और न देश के भलाई के बारे में थोड़ी सी भी अक्ल खर्च कर समझने की शक्ति है ! जिसका परिणाम है कि तुम वहीँ के वहीँ हो और थोड़ी सी बुद्धि रखने वाला तुम्हे अपने वश में किये रहता है ! इन सब बातों को खबर में रखते हुए मैं शाम की ट्रेन पकड़ मुजफ्फरपुर आया और तुरंत फिर मुजफ्फरपुर से सोनपुर चल दिया ! मुजफ्फरपुर तक तो कोई दुर्घटना पेश नहीं आई परन्तु मुजफ्फरपुर से ट्रेन खुलने के बाद मैं एक डिब्बे के दरवाजे के पीछे बैठ गया एवं कान में ठंढ लगने के कारण कानों को रुमाल से बाँध कर सो गया !
एक रुमाल ही तो शरीर से अलग की संपत्ति लेकर मैं घर से चला था ! मुजफ्फरपुर के एक दो जंक्शन के बाद , चूँकि वह एक्सप्रेस ट्रेन थी अतः प्रायः जंक्शन पर ही रुका करती थी ! चलती ट्रेन में जब मैं उनींदी सी अवस्था में था की एक बंदूकधारी पुलिस आकर मुझे जगाया और पूछा कहाँ जा रहे हो ? सोनपुर किस काम से , उससे भी आगे वाराणसी तक जाना है ! टिकट है ? नहीं ! तब तो नहीं जा पाओगे , चल उठ फिर से मैं तुमको वापस मुजफ्फरपुर भेज दूंगा और मेरा कॉलर पकड़ कर उठाया और डिब्बे के अंतिम छोड़ में एक लड़के के निगरानी में बैठा दिया और उसे कहा साले अगर यह भागा तो तुमको अंदर कर देंगे , अगले स्टेशन पर फिर उसके साथी आये और फिर वही सवाल पूछा और वही जवाब मिला तदुपरांत वह एक दूसरे पुलिस के पास जो एक दूसरे डिब्बे में था के संरक्षण में सौंप कर चला गया ! सोनपुर आया वह पुलिस भी उतरा और उसने सामान भी उतारी परन्तु उसकी खोज खबर लेने वाला कोई नहीं था अंततः मैं भी सबसे पीछे उतर प्लेटफार्म की ओर चल दिया क्योंकि उस समय मुझे आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी ! सो मैं आकर एक बेंच पर आराम करने लगा ! कुछ क्षण बाद एक भद्र पुरुष आकर बैठ गए और समाचार पत्र पढ़ने लगे पर मानव मन की जो आदत है उसके अनुसार उन्होंने मुझसे परिचय लिया एवं पूछा कहाँ जाना है ? उत्तर मिला वाराणसी ! फिर ट्रेन आयी और वह डिब्बे में चढ़ा परन्तु उसके न उठने पर उसने आकर पूछा टिकट नहीं है ? नहीं ! तो कोई बात नहीं है चलो मैं रेलवे में काम करता हूँ और सोनपुर छपरा बराबर आता जाता हूँ और स्टाफ मुझे पहचानते हैं ! उसके आश्वासन पर वह युवक उसके साथ चल दिया ! उसने अपना नाम B. Ahmad. बतलाया ! रास्ते में T . T के आने पर उसने उसको अपना साथी बतलाया ! छपरा आने के बाद उसने मुझ से बहुत आग्रह किया कि वह चलकर उसके साथ खाना खा ले और सवेरे वाली ट्रेन से भेज देने का आश्वासन दिया ! जात - पात नहीं मानते हुए भी मैं उनके साथ खाना खाने से इंकार कर दिया परन्तु सवेरे जाने वाली बात स्वीकार कर लिया !
दूसरे रोज वह मैं १० - ५५ में खुलने वाली ट्रेन से वाराणसी ५ बजे २४ - ०९ - १९७७ को पहुँच गया , रास्ते में कोई खास दिक्कत नहीं हुई ! वहां पहुँचने के बाद जहाँ तक मेरा शरीर साथ दिया घूमता रहा और शाम होते - होते गंगा किनारे एक मंदिर के प्रांगण में एक विशाल वट वृक्ष था उसके नीचे अपना आसन जमा दिया और सांय कालीन पूजा के बाद जो प्रसाद मिला उसे ग्रहण कर उस एकांत और अकेले वृक्ष के नीचे सो गया ! प्रातः एक शिक्षक ब्राह्मण जो प्रत्येक दिन प्रातः गंगा स्नान को गंगा जी आते थे आये और उन्होंने मुझसे परिचय पूछा और कुछ देर के वार्तालाप के बाद वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझको अपने साथ अपने आश्रम ले जाने की जिद करने लगे , परन्तु मैंने कहा एक आश्रम को छोड़ कर आया हूँ कि कोई सिद्ध महात्मा से भेंट हो जाये तो संसार को त्याग सच्चे ज्ञान के प्राप्ति में लग जाऊं परन्तु लगता है यह चाह अभी शायद पूरी नहीं होगी ? दूसरे दिन भी मंदिर के प्रसाद का ही सहारा रहा ! फिर ज्यादा इसलिए नहीं घूम सका कि पैर तो पहले ही जवाब दे चूका था पेट भी भट्ठी बना हुआ था और थूक घोंटने में भी लगता था जैसे लोहे का बड़ा सा गोला जबरदस्ती ठूंस रहा हूँ ! कल हो के सवेरे वाली ट्रेन पकड़ मैं छपरा की ओर चल दिया ! उस दिन मुझे दो तीन बातों से साक्षात्कार हुआ जो कि केवल मैं ही समझ सकता था ! तीसरी बात जो सर्वविदित है कि झूठ नहीं बोलना चाहिए इसका भी परिणाम उस दिन मेरे नजरों के सामने आया ! वे दिन शायद मेरे लिए स्मरणीय दिन रहेगा ! क्योंकि स्मरणीय दिन वही होता है जिस दिन कुछ असाधारण घटना घटित होती है !
बनारस से बलिया तक के अंतराल में उस गाड़ी में एक ही टी टी थे ! मैं उससे बचने के लिए प्रत्येक जगह जहाँ गाड़ी रूकती उससे पहले उतर जाता , इस तरह से इससे बचते हुए बलिया आया ! यहाँ आकर उसकी ड्यूटी ख़त्म हो गयी थी और यहाँ से दो टी. टी सवार हो रहे थे ! यहाँ गाड़ी अधिक देर तक रूकती है ! अतः मैं एक बेंच पर आकर बैठ गया था ! उसी बेंच पर एक टी. टी आकर बैठ गए और हमारे बगल में बैठे हुए व्यक्ति से बात करने लगे और जिन लोगों को बिना टिकट के जाना था उनसे वह कुछ - कुछ पैसे ले रहा था ! गाड़ी खुली तो मैं भी दोनों टी. टी से बचता हुआ एक डिब्बे में चढ़ गया और पिछली ही बार की तरह करने लगा परन्तु एक जगह मुझसे गलती हो गयी ! दो तीन स्टेशन के बाद मैं एक टी. टी के चढ़ने के बाद अंतिम डिब्बे में चढ़ गया ! शायद दूसरे टी. टी को मुझ पे कुछ शक हो गया था और मुझको भी लगा कि शायद वह इसी डिब्बे में आएगा ! यह सोंच कर मैं पिछले दरवाजे से उतरने के लिए तत्तपर हो गया और वह इसी उधेड़बुन में था कि वह टी. टी मेरे सर पर सवार हो गया और कॉलर पकड़ते हुए खिंचा और पूछा टिकट दिखाओ ? टिकट तो नहीं है , दूसरे टी. टी की आदत जो उस युवक ने बलिया में देख लिया था उसके विश्वास पर उसने कहा मैंने दूसरे टी. टी साहब को कह दिया है ! यह कहने से उसने युवक को छोड़ दिया ! और दूसरे यात्रियों को चेक करने लगा ! परन्तु मुझको ह्रदय में डर था कहीं यह उस टी टी के पास न ले जाये ! आखिर वही हुआ जब दूसरा स्टेशन नजदीक आने लगा तो वह आया और कहने लगा , हमको तुम पर शक है इसलिए चलो और उनसे कहवाओ ! फिर युवक को पकडे रहा और दूसरे स्टेशन पर आकर उसने टी टी के हवाले कर दिया ! उस टी टी ने युवक से पूछा पर गुस्सा करते हुए कहा जल्दी भाड़ा लाओ वर्ना जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी ! छपड़ा चलिए वहां दूंगा पर उसे विश्वास नहीं हुआ और गेट पर खड़े टी टी से आकर कहने लगा इसे चालान कीजिये इस पर उस गेटकी ने कहा भाड़ा दे दो वर्ना जुर्माना २३ - ०० रु हो जायेगा ! वह युवक को लेकर एक डिब्बे में बैठ गया और पूछा क्या नाम है ? सुधीर कुमार झा ! पिता का नाम श्री कैलाश झा ! कौन काम करते हैं ? आर एम् एस में ! कहाँ ? समस्तीपुर में ! फिर छपरा में कौन हैं जो पैसा देगा ? एक जान पहचान के अहमद साहब हैं ! इंजीनियरिंग विभाग में उनसे ! वो कौन हैं ? जान पहचान के हैं ! वाह तुम झा और पहचान मुस्लिम से ! ज्यादा फ्राड मत बनो ! यह कहकर वह चुप हो गया ! अगले स्टेशन पर अपने साथ उस युवक को उतारा , कुछ लोग घेर कर खड़े हो गए ! टी टी ने कहा अभी नया नया है बहुत झांसा दे रहा है ! कहता है ब्राह्मण है ! अच्छा गोत्र क्या है ? शांडिल्य , उसका चमचा बोला ई गोत्र क्या होता है ? यह तो यह ठीक कह रहा है ! मुझे तो लगा यह मुस्लिम है ! टी टी ने कहा नहीं , है ब्राह्मण ही ! फिर मेरी ओर मुखातिब हो कर कहने लगे , इसी ट्रेन की एक बार की बात है एक व्यक्ति को पकड़ा था , वह था तो धोबी पर उससे पूछा कौन जात हो तो उसने कहा क्षत्री ! हमने कहा क्षत्री लगते तो नहीं हो ! कौन क्षत्री हो उसने कहा पछाडन क्षत्री क्योंकि वह कपडे से पानी को पछाड़ता था !
तुम कौन ब्राह्मण हो ? मैथिल ब्राह्मण हूँ ! मछली खाते होगे ? अच्छा आओ हमारे साथ बांयी तरफ वाली बोगी में बैठो और मेरे साथ वह भी बैठ गया ! युवक खिड़की होकर बाहर का दृश्य देखने लगा ! गाड़ी खुल चुकी थी ! अगला स्टेशन छपड़ा ही था ! टी टी ने अपने चमचे से पूछा गोपाल इसको कौन सजा दें ! देखते हैं मुंह छुपाये है ! नजर मिलाने की हिम्मत नहीं है ! इस वाक्य को सुनकर मुझे क्रोध आया ! उस समय मैं खिड़की से बाहर के दृश्य को देख कर प्रकृत पर गौर कर प्रकृत की प्रकृति पर गौर कर रहा था ! मेरे साथ जो घटना चक्र चल रहा था उसके बारे में मेरे चेहरे पर कोई हर्ष- विषाद विदित नहीं हो रहा था ! क्योंकि उसके परिणाम को भोगने के लिए तैयार था ! जब मुझे परिणाम से डर नहीं था तो चिंता किस बात की होती ? वह इन लोगों की ओर देखने लगा ! टी टी ने मेरे दाहिनी हाथ का अंगूठा देखा और कहा अभी शुरुआत है ! कौन गुरु है तुम्हारा ? कैसा गुरु ? कोई भी काम शुरू करता है तो उसका कोई गुरु होता है ! कौन काम ? मैं कोई काम नहीं करता ! तो तुमको बलिया से छपड़ा तक का रखवाली करने का ठेका मिला है ! कुछ तो करते होगे ? क्या करते होगे ? क्या करते हो ? पढ़ते हैं ! टी टी के चेहरे पे अविश्वास की रेखा गहरी हो गयी ! किस क्लास में पढ़ते हो ? I . Sc . में ! I . Sc . का मतलब क्या होता है ? जवाब सुनकर कुछ संतोष सा उसके चेहरे पर झलकने लगा ! आर्किमिडिज़ का सिद्धांत क्या है ? उसके पश्चात तो उसने प्रश्नो का ताँता सा लगा दिया और उस युवक का भाग्य शायद कुछ तेज था ! क्योंकि उसकी बुद्धि कुंठित नहीं हुई थी और वह हर प्रश्न का समुचित जवाब दे रहा था ! यूरेका शब्द का क्या अर्थ है ? किसने कहा था ! इसका इतिहास वह वहां बैठे अन्य लोगों को सुनाने लगा ! फिर उस युवक की ओर हो पूछा गुप्त ताप की क्या परिभाषा है ? इसकी क्या इकाई है ? एक छोटी सी सुई डूब जाती है परन्तु इतना बड़ा जहाज नहीं डूबता ? घनत्व की परिभाषा क्या है ? रेल के दो पटरियों के बीच खाली जगह क्यों छोड़ी जाती है ? जो सवाल का जवाब जल्द - जल्द दे दे उसे क्या कहते हैं ? सुराही का पानी क्यों ठंढा रहता है ? आदि - आदि प्रश्नो को उसने पूछा ! इन सारे प्रश्नो का मैं ने सही - सही उत्तर दिया ! इस बीच उसने मेरी दो बार पीठ थपथपा कर शाबाशी दी और कहा तुमको पहले कहना चाहिए था कि मैं छात्र हूँ पैसा नहीं रहने के कारण टिकट नहीं कटा सका तो मैं तुमको इतना कष्ट नहीं देता ! मैं मानता हूँ गरीबी एक अभिशाप है ! मैं फटे कपडे पर उतना मार्क नहीं करता ! मुझे पहले ही शक हो रहा था कि तुम एक अच्छे लड़के हो फिर भी तुमने झूठ बोलकर गलती की जिसके कारण तुम्हे और मुझे भी परेशानी हुई ! तुम्हे आदमी पहचान कर बात करना चाहिए था ! मैंने कहा सब तो आपके जैसे विचार वाले नहीं होते हैं ! फिर आपका अनुभव उम्र के अनुसार ज्यादा है ! आप रेलवे में हैं हमेशा विचित्र लोगों के संपर्क में रहते हैं इसलिए आप जितनी जल्दी लोगों को पहचानियेगा उतनी जल्दी मैं नहीं ! फिर भी मैं अपनी गलती के लिए क्षमा चाहता हूँ ! और आपकी इस मेहरबानी के लिए बहुत - बहुत धन्यवाद ! टी टी कुछ भावावेश में आ गया था उसने कहा भाग्य का मारा हूँ जो रेलवे की खाक छान रहा हूँ वर्ना मैं भी आज कहीं प्रोफ़ेसर होता !
हाँ आपको होना भी चाहिए था मैंने कहा ! वहाँ बैठे दूसरे लोगों के भी नजरों में जहाँ मेरे लिए दिल में नफरत एवं आँखों में घृणा थी वहां अब सहानुभूति एवं आदर झलक रहा था ! एक व्यक्ति ने पूछा आप कहाँ पढ़ते हैं ? समस्तीपुर कॉलेज समस्तीपुर ! टी टी साहब ने कहा तुम समस्तीपुर जाओगे यह जनता ट्रेन लगी हुई है इससे सोनपुर चले जाओ वहां से मुजफ्फरपुर और फिर वहां से नार्थ बिहार पकड़ कर समस्तीपुर चले जाना , इस रास्ते में कहीं चेकिंग नहीं है ! रास्ता साफ है ! यह कह वह चला गया ! छपड़ा आ चूका था मैं भी उतर पड़ा ! मेरे ह्रदय में उस टी टी के लिए आदर का भाव था और मैंने उसे दिल से बहुत बहुत धन्यवाद दिया और उसके कहे अनुसार मुजफ्फरपुर २५ - ०९ - १९७७ के रात में ८ - ३० पर उतरा और नार्थ बिहार में आर. एम . एस के बोगी में बाबूजी के साथी स्टाफ को प्रणाम कर अपना परिचय दे बैठ गया और सकुशल समस्तीपुर उतर कर अपने डेरे पर पहुँच गया ! समस्तीपुर स्टेशन से डेरे तक पहुँचने में केवल एक घटना घटी कि मेरा चप्पल टूट गया जिसे मैं किसी तरह ढो कर डेरे तक लाया ! जहाँ मेरे परिवार वाले बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे !
इस तरह मेरे मन में उठे प्रश्नों के उत्तर मिल गए !
सुधीर कुमार ' सवेरा '