२ ५ ६ . मोडदार कोमल पगडण्डीयां सुराहीदार घुमड़दाड़ सीढियाँ खांचेदार खजुराहो की विभिन्न मुद्रा तप्त - तप्त आँखें और और अदायें लाल दल पत्र खिले मंद - मंद विहंस रहे हाथ बांध हैं खड़े सबकुछ होकर भी पास - पास सदियों से अंक में भरे हैं अनबुझी अतृप्त प्यास ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४ २ - ३ ० pm
२५५ . सघन चमन मधुर - मधुर पवन मंद - मंद लय से मृद -मृद थिरकन छायी हुई है हर ओर क्या वन क्या उपवन क्या अर्वाचीन क्या प्राचीन रूप , रस , गंध के उस पार अर्थहीन रागहीन हतभाग अमरता को प्राप्त करता कह कहों से भरा हर मुग्ध क्षण ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ४ - १ ९ ८ ४ २ - २ ० pm
२ ५ ४ . एहसास मुझे हर सही गलत का होता है ऐसा लगता है एक अनाम अपराध का झूठा कलंक मेरे माथे लगा है मेरे प्रारब्ध ने मेरे ही खिलाफ गलत सूचनाएं सब को दे दी है लोग सभी ढूंढ़ रहे हैं अपना भी चेहरा खरोंच कर मेरे लिए गलत सूचनाओं का ढेर लगा रहे हैं ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ६ - ० ४ - १ ९ ८ ४
२ ५ ३ . सबके दामन रो रहे सबकी आत्मा चीख रही माथे सबों के शर्म से हैं उठे हुए सब के हाथों ने परम्परा के टूटी तलवारों के मुठ हैं पकड़े हुए ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४ १ - १ १ pm
२ ५ २ . आज का सवेरा सुना रहा था एक सन्देशा कह रहा था खुद मुझ से उब गया हूँ खुद मैं इन्सान होने से यूँ मैं अल्ला भी बोलता हूँ भगवान का नाम भी जपता हूँ हर बाग चौराहे पे जाता हूँ सब इतना नीरस और छिछला लगता है मनो जैसे वन के पेड़ो ने अपने पत्ते और छाल उतार कर परे कर दिए हों मानव अब भी आदिम चेतनाओं के कब्र पर ही अपने खुश्क आंसू बहा रहा है ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४ १ - ५ ० pm
२ ५ १ . सब उजड़ा उखड़ा हुआ केंद्र भी संभाल नहीं पता संसार में मात्र उन्मुक्त है अराजकता चतुर्दिश रक्तपात द्वेष का ज्वार फुट पड़ा इंसानियत का रिवाज ही उठ गया भलों का अच्छाई से रिश्ता ही टूट गया बुरों में व्याप्त है आवेश पूर्ण तीव्रता सबकुछ बिखरा पड़ा है हमारे ही सामने शराफत का ताला हमारे ही मुंह पर है जड़ा हुआ ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४ १ - ० ० pm
2 5 0 . तुमने दिया था दर्द मैंने पा लिया गीत खारे वे अश्रु बने उर का मीठा संगीत करते उपेक्षा तुम्हे मन में गड़ा पाया तुमने क्या दिया ? मैंने क्या पाया ? सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४
२ ४ ९ . बेवफाई के यादों मेरे पास न आओ पल दो पल ठहर गया हूँ आराम की साँस लेने को मुझे आकर इतना ना सताओ दर्द दिल में है ओठों पे हूँ मुस्कान लिए पर कैसे मैं जिऊंगा बेवफाई के यादों के सहारे गम का मारा ऐसे ही पागल हूँ मुझे और पागल न बनाओ बेघर तूने कर दिया मुझे इस तरह दो राहे पे ला के नई राह भी न दिखाई एक आवाज दे के पहले ही ठोकर से मैं संभल नहीं पा रहा हूँ मुझे और न गिराओ पल दो पल ठहर गया हूँ आराम की साँस लेने को बेवफाई के यादों मुझे आकर इतना ना सताओ हर राह सुनी , हर पल सुना प्यार की हर साँस सुनी चेहरे से नकाब हंटा ऐ चाँद तेरे बिना तारों की यह बारात सुनी ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३ १ - ० ३ - १ ९ ८ ४ समस्तीपुर १ २ - ३ ० pm
२ ४ ८ . हाँ मैं पागल हूँ फिर भी खुश हूँ कि जानकर यह कि मैं पागल हूँ त्याग ही मेरा लाभ है गरीबी में मिलता अमीरी का स्वाद और मृत्यु को जीवन समझना ही मेरा काम है मैं पागल हूँ पागल ही मेरा नाम है हर वह दिल है मेरा दिल बलिदान का जहाँ भाव है मुझे ढूंढने की जरुरत नहीं हर उस घर में मिल जाऊंगा मैं जहाँ इंसानियत का पढ़ाया जा रहा हो पाठ और मानवता हो कोने - कोने में विराजमान मेरे पागलपन के दीवानगी को न पूछो हर को चाहता हूँ अपने जैसा पागल बनाना बोलो कौन - कौन है तैयार करने को ईर्ष्या , द्वेष , छल , प्रपंच , झूठ , धोखा धरी का बलिदान ! सुधीर कुमार ' सवेरा ' २ ३ - ० ३ - १ ९ ८ ४ कोलकाता ९ - १ ५ pm
२ ४ ७ . खुदा तेरे हर फितरत को हर मोड़ पे एक नया आयाम दे खुदा तुझे बख्शे और तुझे महफुज रखे हर मोड़ पे तूँ मुझे बदनाम कर और लोग मुझे एक नया नाम दे ! सुधीर कुमार " सवेरा " ३ ० - ० ४ - १ ९ ८ ४ कोलकाता
२ ४ ५ . उज्जवल सुमित ० १ - ० ५ - १ ९ ९ २ ---- २ २ -० ६ - २ ० १ ० " अपनी मौत " २ २ - ० ६ - २ ० १ ० लगभग १ ० बजे प्रातः " जेठ शुक्ल पक्ष एकादशी " " भद्र घाट - पटना " जिन्दगी ऐसे छोड़ जाएगी साथ कभी सोंचा न था अपनी अपनों की मौत होगी ऐसी ऐसा कभी सोंचा न था न मालूम था अपना गुनाह और ना ही गुनाहों की ऐसी सजा खता भी हुई मुझसे कोई ऐसी कभी सोंचा न था तुम इस कदर छोड़ जाओगे बेटा हमें अकेला इस कदर कर जाओगे कभी सोंचा न था दर्द तुम ऐसा दे जाओगे पल - पल यादों में ही बस अब रह जाओगे जिन्दगी भर का रोना दे जाओगे ऐसा कभी सोंचा न था भूल मुझसे हुई क्या ? बता तो देते खता तो न थी कोई मेरी फिर सजा क्यों ऐसी दे गए ? ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो मगर मुझको लौटा दो मेरा बेटा कहता था डैडी कहता था मम्मी जो था सबका चहेता इतना था भोला इतना था सच्चा जो न देखा है मैंने उस सा कोई दूसरा बच्चा सुनता था सबकी न देता था जवाब करता था सबकी हो कोई अच्छा या ख़राब हर पल जीता था बस दोस्तों की खातिर गया जहाँ से बस उन्ही के खातिर थे उसके बड़े सीधे रास्ते न थी वैर उसको किसी से न था गिला इस जहाँ से था वो अदभुत मेरा बेटा दिल रोता सदा उसके वास्ते सभी थे उसके दिलो जाँ से चाहते सभी के जिगर का था वो टुकड़ा थी न उसकी कोई फरमाईस जो भी मिल जाता खुश उसी से हो लेता भगवान किसी को ऐसे न बुलाये रोते माता पिता को जग में कोई बेटा ऐसे न छोड़ जाये जान वो ले लेता हमारी पर दुःख न देता इतना भाड़ी दिल लगता नहीं अब इस उजड़े चमन में हमें भी बुला ले वो अब अपने वतन में काश वहाँ होते कुछ तो तेरे लिए करते तुमने तो पुकारा होगा पर हाय रे मेरी किस्मत हम न वहाँ थे तुम छोड़ जहाँ से चले गए जाने कहाँ है वो देश आती न वहाँ से कोई सन्देश तुम छोड़ जहाँ से चले गए रोते हैं दिन रात ये नैन रहता दिल बेचैन तुम क्यों छोड़ गए न कोई खोज न खबर न मिलती कोई दरश तुम छोड़ जहाँ से चले गए लाखों चेहरे इस जहाँ में पर कोई तुझ सा नहीं है दीखता करोड़ों की इस भीड़ में कोई तुम सा नहीं है मिलता अभी - अभी तो तुमको देखा था खो गए पल भर में कहाँ तुम २ ३ - ० ५ - २ ० १ ० को लिखा आपने अपना निक नेम uv = <३ >३ मतलब हम तो समझ पाए नहीं अपने आदर्श के नाम लिखे हैं आपने डैडी और दादा जी आपने अपने प्रिय शिक्षकों के हैं नाम लिखे अभय सर , एस के चौरसिया और एस कान्त हौबी में लिखा है आपने कम्पूटर पर गेम खेलना गाना सुनना , नेट सर्फिंग बाइक चलाना और सबसे बढ़कर सबसे बड़ी बात सबों को खुश रखना आपका ई मेल आईडी dbz.sumit@gmail.com आपको माँ के हाथों का खाना है बेहद पसंद रंगों में है पसंद आपको काला , पीला , लाल और गुलाबी पसंदीदा स्थल हैं आपके पेरिस , एल ए और वो जगह जहाँ आप बिता सकें अपने प्यार के साथ समय कुछ हसीन पसंदीदा खेल हैं आपके बैडमिन्टन , भौलिबाल , बाइक रेसिंग और मार्शल आर्ट्स आपको घृणा है भ्रष्टाचार से झूठे , धोखेबाजों और पीठ पीछे छुरा घोंपने वालों से आपको हर वो चीज पसंद है जो दे ख़ुशी , शांति और प्यार आपके सपने थे कि बने अच्छे इंजिनियर ( दो दिनों बाद एडमिसन के लिए भोपाल जाने वाले थे ) पर उससे भी पहले आप चाहते थे बने एक अच्छा दयालु इन्सान जो कर सके जरुरत मंदों की मदद जो कर सके कमजोरों की रक्षा जो किसी खास को कर सके बेहद प्यार जो जिए किसी महान आत्मा की तरह आपके जिन्दगी का सबसे हसीन पल जब मिली वो जिसे आपने बेहद चाहा आपके जीवन का है सिद्धांत एक लिजेंड की तरह जीओ जिओ और जीने दो जीवन एक बार ही मिलती है सो सबों को खुश रखो और न तो खुद के जीवन से खेलो और ना ही दूसरों के जीवन से हमारी जिन्दगी जितनी ही पूरी थी उतनी ही अब अधूरी हो गयी है सारा जीवन अब उदासी , हताशा , दुःख विधाता ने छीन लिया हमारा सारा सुख जितना ही था जीवन भरा पूरा उतना ही अधुरा बन के रह गया है सब कुछ था जहाँ हरा भरा अब बस ठूंठ सा रह गया है समय के रेत पर जो लिखे थे तुमने इबारत हसीन पलों के एक ही पल में वो हो गए धूल धूसरित इस जन्म में न होंगे अब दरश तेरे दिल कबूल करते नहीं ये सत्य हमारे सब कुछ पाकर खो दिया सारा जो था हमारा न रहा वो सहारा उजड़े इस दिल को कहीं कोई छाँव नहीं मिलता गहरा ये जख्म इतना कि कहीं कोई सहारा नहीं मिलता ईश्वर ने किया बहुत बड़ा हम से छल पहले वो चुपके से ले गया हम से दूर फिर उसने उस हथियार ( पानी ) से किया वार जिसका ज्ञान बिलकुल न था आपको मेरे यार अपने डूबते दोस्त की जान बचाने तत्तछन्न कूद पड़े गंगा जी में बिना कोई सोंच विचार ये भी न सोंचा एक बार तैरना बिलकुल नहीं आता आपको यार दोस्त के साथ - साथ अपनी भी इह लीला कर दी समाप्त माफ़ मैं न कर पाउँगा इस बार जीवन भर भूलूंगा इस दर्द को बस मर कर चाहता हूँ जीवन में आये ना कोई पर्व और त्यौहार ये अब सिर्फ रुलाता है हमें बार - बार हर पल दिल रोता जार - जार करता रहता बस पल - पल आपका इंतजार दिल से रिसते रहते खून की बूंदों की तरह अश्रुआञ्जलि बस अब यही है हमारी श्रधांजलि ! सुधीर कुमार ' सवेरा '
२ ४ ५ . क्या सोंच रहे हो ? दुनियाँ ! क्या समझे ? भाग्य ! ऐसा क्यों ? प्रारब्ध ! वो क्या ? तूने भंग कर दिया कौन सी चीज ? मेरा ध्यान ! उससे क्या होता ? यथार्थ का दर्शन उससे क्या होगा ? मन की शांति ! २ १ - ० ३ - १ ९ ८ ४ कोलकाता ९ - ५ ५ pm सुधीर कुमार ' सवेरा '