255 .सघन चमन
२५५ .
सघन चमन
मधुर - मधुर पवन
मंद - मंद लय से
मृद -मृद थिरकन
छायी हुई है हर ओर
क्या वन क्या उपवन
क्या अर्वाचीन क्या प्राचीन
रूप , रस , गंध के उस पार
अर्थहीन रागहीन हतभाग
अमरता को प्राप्त करता
कह कहों से भरा हर मुग्ध क्षण !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ४ - १ ९ ८ ४
२ - २ ० pm
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