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मोडदार कोमल पगडण्डीयां
सुराहीदार घुमड़दाड़ सीढियाँ
खांचेदार
खजुराहो की
विभिन्न मुद्रा
तप्त - तप्त आँखें और और अदायें
लाल दल पत्र खिले
मंद - मंद विहंस रहे
हाथ बांध हैं खड़े
सबकुछ होकर भी पास - पास
सदियों से अंक में भरे हैं
अनबुझी अतृप्त प्यास !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४
२ - ३ ० pm
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