सोमवार, 27 मई 2013

253 .सबके दामन रो रहे



२ ५ ३ .

सबके दामन रो रहे 
सबकी आत्मा चीख रही 
माथे सबों के शर्म से हैं उठे हुए 
सब के हाथों ने 
परम्परा के टूटी तलवारों के 
मुठ हैं पकड़े हुए !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४ 
१ - १ १ pm 

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