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हाँ मैं पागल हूँ
फिर भी खुश हूँ
कि जानकर यह
कि मैं पागल हूँ
त्याग ही मेरा लाभ है
गरीबी में मिलता
अमीरी का स्वाद
और मृत्यु को जीवन समझना ही
मेरा काम है
मैं पागल हूँ
पागल ही
मेरा नाम है
हर वह दिल
है मेरा दिल
बलिदान का जहाँ भाव है
मुझे ढूंढने की जरुरत नहीं
हर उस घर में
मिल जाऊंगा मैं
जहाँ इंसानियत का
पढ़ाया जा रहा हो पाठ
और मानवता हो
कोने - कोने में विराजमान
मेरे पागलपन के
दीवानगी को न पूछो
हर को चाहता हूँ
अपने जैसा पागल बनाना
बोलो कौन - कौन है तैयार
करने को ईर्ष्या , द्वेष , छल , प्रपंच , झूठ ,
धोखा धरी का बलिदान !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' २ ३ - ० ३ - १ ९ ८ ४
कोलकाता ९ - १ ५ pm
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