२ ९ ७
आप बोसा बिना गिने अनगिनत लिए ,
दिन गिना करते थे इस दिन के लिए ,
ले करके पूछूंगा दो बोसे रुखसार के ,
कैसे मिजाज हैं मेरे परवर दिगार के ,
मेरे फरमाइशी बोसे पे , पहले तो वो इतराये ,
फिर सिमट के आ गए , बाँहों में शरमाने के बाद !
दिल से कहते थे न ऐसी राह चल !
ठोकर खा कर गिरा अच्छा हुआ !!
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ तो हुई ,
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया !
आज दिले बर्बाद की जिद है ,
रोएँ तबतलक दामन से लिपट के ,
तड़पते देखता हूँ जब कोई शय ,
उठा लेता हूँ उसे अपना समझ कर !
दिल में रखो किसी को दिल में रहो किसी के !
सीखो अभी तरीके कुछ रोज दिलवरी के !!
सिवा इसके कोई तमन्ना नहीं है !
फकत आपको देखना चाहते हैं !!
आराम तमाम उम्र के सीने में दफ़न है !
हम चलते फिरते लोग मजार से कम नहीं !!
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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