3-
कांटे को कौन लगाता है गले ?
ज़िन्दगी में फूलों के सिवा
राहे मस्ती में अंगारे बिछाए हैं हमने
कर लेते हैं तूफां में सभी किश्ती किनारे
किश्ती को तूफां में डाला है हमने
बादल से चाहते हैं सब लेना अमृत
खुद पे बिजली गिरवाई है हमने
उनको एहसास हो न हो जमाने का
जमाने का एहसास कराया है हमने
बिखेर दी क़दमों में सारी खुशियाँ उनके
अश्कों में भिंगोया है खुद को हमने
चाहा ही कब फूल उगे चमन में मेरे
बाड़े को ही जब तुड़वाया है हमने
उनके दर्दों का भी एहसास था मुझको
पर कब हंटाया सिने पर से उनको हमने
जुबाँ खुलती है उनकी बात रह जाती है चुप
कब खोला उनपे दिल के बातों को हमने
राहे सफर में तन्हाई को लिए फिरता हूँ
गमे दो रोटी के उलझन में गुजारी है जिन्दगी हमने
फिकरा कसे लाख ज़माना हमपे
अपने दर्दों से दिल को बहलाया है हमने
आरजू होती है जो सबकी
खुद उससे मुंह चुराया है हमने ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 14-06-1982
कांटे को कौन लगाता है गले ?
ज़िन्दगी में फूलों के सिवा
राहे मस्ती में अंगारे बिछाए हैं हमने
कर लेते हैं तूफां में सभी किश्ती किनारे
किश्ती को तूफां में डाला है हमने
बादल से चाहते हैं सब लेना अमृत
खुद पे बिजली गिरवाई है हमने
उनको एहसास हो न हो जमाने का
जमाने का एहसास कराया है हमने
बिखेर दी क़दमों में सारी खुशियाँ उनके
अश्कों में भिंगोया है खुद को हमने
चाहा ही कब फूल उगे चमन में मेरे
बाड़े को ही जब तुड़वाया है हमने
उनके दर्दों का भी एहसास था मुझको
पर कब हंटाया सिने पर से उनको हमने
जुबाँ खुलती है उनकी बात रह जाती है चुप
कब खोला उनपे दिल के बातों को हमने
राहे सफर में तन्हाई को लिए फिरता हूँ
गमे दो रोटी के उलझन में गुजारी है जिन्दगी हमने
फिकरा कसे लाख ज़माना हमपे
अपने दर्दों से दिल को बहलाया है हमने
आरजू होती है जो सबकी
खुद उससे मुंह चुराया है हमने ।
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 14-06-1982
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें