6-
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज हाथों से निज यौवन का मान बढाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज मुख से औरों के गुण गाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज हाथों से औरों का भला चाहूँ
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज से सुन्दरता को बचाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ मानवता का
कि मानवता की रक्षा कर पाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कुछ करने को आज
कि कोई काम कल पर न टालूँ
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ भविष्य सोंचने का
फिर आज की चिंता क्यों करूँ ?
मुझे अभ्यसण नहीं है दुखों का
फिर फुर्ती को क्यों गले लगाऊं ?
जब मरना ही है इक दिन
फिर जीने की ईक्षा आज क्यों करूँ ?
सुधीर कुमार ' सवेरा '
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज हाथों से निज यौवन का मान बढाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज मुख से औरों के गुण गाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज हाथों से औरों का भला चाहूँ
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कि
निज से सुन्दरता को बचाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ मानवता का
कि मानवता की रक्षा कर पाऊं
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ कुछ करने को आज
कि कोई काम कल पर न टालूँ
मैं अभ्यस्त नहीं हूँ भविष्य सोंचने का
फिर आज की चिंता क्यों करूँ ?
मुझे अभ्यसण नहीं है दुखों का
फिर फुर्ती को क्यों गले लगाऊं ?
जब मरना ही है इक दिन
फिर जीने की ईक्षा आज क्यों करूँ ?
सुधीर कुमार ' सवेरा '
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