सोमवार, 12 दिसंबर 2011

5. धीरे - धीरे तुम्हारे विचार बदलते हैं


5-
धीरे - धीरे तुम्हारे विचार बदलते हैं
फिर तुम्हारी दृष्टि बदलती है 
फिर परिभाषा ही बदल जाता है 
उन बातों का जिस से तुम्हारा नाता है 
फिर इक दिन तुम ही बदल जाते हो 
इन बदलाओं में तुम्हे 
शास्वत का भान नहीं होता है 
जो न बदला था न बदलेगा न बदलता है 
बदलाओं में घिर कर बदलते मत रहो 
शास्वत को जानकर चिरस्थाई सुख पाओ 
कहते हो कुछ बोलो 
बहुत बोला बोलता ही रहा 
व्याकरण की अशुद्धियों से भरपूर 
बिना चिन्ह विचार के 
बोलता ही रहा हूँ मैं 
बदलता ही रहा हूँ मैं 
एक उदंड छात्र की तरह 
हँसता ही रहा हूँ मैं 
अब भी तो कहो चुप रहो 
चुप्पी का राज तो जानो 
चिरस्थाई सत्य को पहचानो 
खुद को जानो 
मौन की गंभीरता में गुम हो जाओ ।

सुधीर कुमार ' सवेरा '       20-10-1980 

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