मत पूछो दर्द वो कैसा होता होगा जब यार किसी का जुदा होता होगा जब प्यार किसी का बिछुरता होगा मत पूछो दर्द वो कैसा होता होगा जब माँ की ममता मरती होगी जब पिता का प्यार रूठता होगा मत पूछो दर्द वो कैसा होता होगा जिसने कभी न सुख देखा जब दुःख से भी नाता टूटता होगा शायद जग ही उसका छूटता होगा आशा ही जब मर जाती होगी घोड़ निराशा घेरती होगी सब ही जब रुठते होंगे जीकर भी जब मरता होगा मत पूछो दर्द वो कैसा होता होगा छोड़ कर सारी दुनिया ठोकर दर - दर खाता होगा मंजिल न उसको मिलती होगी भूखा होकर प्यासा होकर फाँके दर - दर खाता होगा मत पूछो दर्द वो कैसा होता होगा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 15-09-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
आपको मैं अपना समझूं ऐसी मेरी तक़दीर नहीं आपने गर समझा होगा अपना तो इसके लायक मैं नहीं समझते हैं दोनों एक दुसरे की बात पर किसी की कुछ चल सकती नहीं दूर रहकर भी हैं आप मेरे पास जैसे होता है पानी और बूंद का साथ आपने तो देखा मुझे हँसते हुए पर मेरे दर्द की आपको थाह नहीं मेरे वज्र जैसे दिल को भी पिघला दिया आपके वो स्नेह - सिक्त भाव छा गयी है दिल में आज की आपकी वो विह्वल तस्वीर उठाने के लिए अब एक टीस छोड़ गयी है दिल में एक नासूर हो गयी एक चुक कर सको तो कर देना माफ़ हो गयी हो गर कोई भूल !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 19-06-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
ये दुनिया है कितनी हँसी जिधर देखो उधर है मस्ती शामें रंगीन सुबह बहार दोपहर हँसी रातें गुलजार गुलाब खिली बही बसंती बयार ये दुनिया है एक रंगीन बाजार मिला दोस्तों का प्यार मैं हूँ सबका यार न कही जो तुने बात मैं कहता हूँ सबसे आज गम लाख घिर जाये हो जाये बादलों की रात मर जाये माँ की ममता छुप जाये पिता का प्यार न होगा उतना दुःख मर जायें गर हम ही आज पर छीन जाये जो किसी का प्यार जो रहा हो सच्चा यार लगा दिया हो जिसमे ज़माने ने आग झुलस गयी हों जिसमे कलियाँ हजार वो बहार गर मिल भी जाये तो क्या है जलन की मारी ये दुनिया इर्ष्या से भरी ये दुनिया स्वार्थ में पलती ये दुनिया लोभ की मारी ये दुनिया ऊँच नीच की मारी ये दुनिया गरीबी अमीरी में बंटी ये दुनिया जात पात से घिरी ये दुनिया ये दुनिया गर मिल भी जाए तो क्या है दो दिलों को जो तोड़े ये दुनिया मुझको मुझसे दूर करे हमको तुम से दूर करे दिल को तोड़े जहर भी न दे हम को हम से अलग करे हम को उनसे अलग करे हम क्यों जियें हम क्यों न मरें ये शरीर बिना प्राण कैसे रहें ढाओ जुल्म हम हजार सहें गा - गा के मर जाने दो कैसे भला हम चुप रहें कैसे अब हम जिन्दा रहें ये दुनिया गर मिल भी जाए तो क्या है जब वो ही नहीं तो हम क्या हैं जान हो ही नहीं तो जिस्म क्या है जब रात नहीं तो ख्वाब क्या है जब लौ ही नहीं तो प्रकाश क्या है जब ' उषा ' नहीं तो ' सवेरा ' क्या है जब तुम ही नहीं तो मेरा क्या है ऐसी गम की दुनिया मिल भी जाये तो क्या है जब तुम ही नहीं तो ये दुनिया क्या है गाने की भी जब छुट नहीं रोने की भी इजाज़त है नहीं मौत भी अपने पास नहीं कहो अब मैं क्या करूँ जिन्दगी है ये क्षण भर की पर बगैर तेरे ये क्षण भी लग रहा पहाड़ है गम से बोझिल है ये दिल क्यों न खुद ही गम पिऊँ क्यों दुनिया को गमगीन करूँ !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 07-09-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
जान को पिघला दूँ वो चिराग हूँ मैं और तूँ है वो सुबह जिस से दिल खिल उठता है जलता रहता हूँ जब तक तुझे नहीं देख लेता हूँ मैं और झट बुझ जाता हूँ सामने जब तूँ आ जाती है नजदिक तो मैं तेरे इतना हूँ दिल की धड़कन भी सुन लेता हूँ दूर तूँ इतनी है तुझे छू भी नहीं पाता हूँ अब तो न मुझे मिलने की हिम्मत है और न जुदाई की ताकत है क्योंकि वहीं से मुझको जुल्मत मिली है चमक तुने जहाँ से पायी है इस नश्वर संसार को मत दिल दे तूँ अपना कभी वो चले जायेंगे कभी तुम्हे है चला जाना फूल का हँसना बदमजा है और बुल - बुल की फरियाद का कोई जबाब नहीं है मुफ्त में तोहमते चंद अपने सर ओढ़ चले आये थे किसलिए और क्या कर चले है प्यार का दरिया या कोई तूफान है ऐसे जीने से भला हम तो मर चले जब हो गये पैदा एक ही दाने से दरख़्त , पत्ते , फल और छाल तो कहना ये नहीं होगा गलत हम भी उसी एक बीज के हैं रूपाकार हैं जिस तरह एक ही बीज के गुलोखार , फूल और कांटे हैं जैसे एक ही समय के दो हिस्से दिन और रात एक ही जीवन के दो आकार सोना और जाग्रत है उसी तरह ' उनका ' ये दो परवाना जीवन और मौत मैं ही वो ' मौत ' हूँ जिसे तुम भूलना चाहते हो मुझे ही वो बदकिस्मत समझते हो जिससे तुम्हे बेहद नफ़रत है मैं ऐसी बेकार नहीं न ही रूप भयानक है यह मेरा रहस्य भेद बहुत ही आनंददायक है मैं तुम्हारी कूटमज्जा और ख्वाबे गफ़लत से जगाने वाली हूँ दुनिया रूपी भयानक स्वप्न से दूर करने वाली हूँ तेरी तमाम कशमोकश से राहत दिलाने वाली हूँ मैं तेरी फूल का मुरझाना नहीं पक्षियों के चोंच से बचाने वाली हूँ मैं भयानक कहाँ हूँ भयानक तेरी दुनिया है बरसाते हो जहाँ सौ - सौ आँसू अरमानो के तले दबी तुम्हारी जिन्दगी है एक सुख की इक्षा में लाख दुःख सहते रहो एक फूल को पाने के लिए लाखों कांटों से खेलते रहे एक मोती को पाने के लिए हजारों तूफान से लड़ते रहे कोई एक जर्रा चाह रहा तो कोई एक कतरे की तरफ दौड़ रहा पर मुझे तेरी चाहत का प्याला खिंच रहा तुझसे देखा सबको और तुझको न देख सका तूँ रहा आँखों में मेरे और मुझसे ही छुपा रहा तुझसे छू कर समझा सबकुछ पर तूँ हर स्पर्श में भी छुपा रहा अब मैं तेरी बात छोड़कर शराब और गवैये की बात कर रहा दलीलों से तेरा पता नहीं मिलता सुलझा रहा था धागों को शिरा नहीं मिलता तुझे पाना किस कदर मुश्किल होगा अब जिश्मे शहर में अपना पता नहीं मिलता जब चला लेने थाह तेरी तुझमे ही तब खो गया जब गम हुए आप ही तो तेरा बताना क्या रहा मोहब्बत हुस्न की तरफ चली तो वापिस आने के काबिल न रहा सोंचा जो करूँगा शाहे बेमिसाल की तारीफ़ पर देख कर तुझे वापिस आने के काबिल न रहा भौंरा फूल की ओर जा रहा परवाना शमा की ओर जा रहा हम भी इसी तरह खिंचे चले आ रहे तेरे प्यार में दिल मेरा दीवाना बनता जा रहा तलाश किया बहुत तलाश किया जहीं गया वहीं झाँक - झाँक कर तेरा तलाश किया एक झलक दिखा कर जब से छुपी हो ढूंढ़ रहा ढूंढ़ रहा तुझे ही बस ढूंढ़ रहा बेपर्दगी ऐसी कि हर जर्रे में तेरा जलवा नज़र आ रहा है उसपे पर्दा ऐसा तेरी सूरत भी नहीं देख पा रहा जबसे तेरी मोहब्बत को समझा हूँ तुझसे ही बंधा रहा दिल देकर हाथ में तुझको खुद हैरान घूमता रहा कभी जुल्फें कभी सूरत देखी देखते ही देखते कितनी बार तुम में ही गुम होता रहा कहते हैं इश्क की लगी लगाये नहीं लगती लग जाये तो बुझाये नहीं बुझती बन के लहर सागर के सीने पर मचलता रहा चाहता हूँ टूट जाये ये जिस्म जब - जब ये जुदाई का कारण बनता रहा मिला दूँगा तेरे जर्रे में हर कतरा अपना गर तेरे दिल से आशनाई मिलती रही दिल के न रहने पर जिश्म मेरा बेचारा हो गया क्योंकि दिल मेरा मोहब्बत में आवारा हो गया शबनम की फ़ौज ने फूल को मसलना चाहा मिल कर सभी फ़िक्र दिल को मसलता रहा इतने में झोंका एक हवा का आया शबनम सारी गिर गयी फूल को जब उसने छेड़ा ये मेरी पावों का था एहसान मेरे गिरने के बहाने सहारा उनका मिलता रहा कौन ठीक कर सकता अब मुझको भला क्योंकि इश्क के दर्दमंद की दवा सिर्फ दीदार रहा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 28-08-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
गम मुझे ढूंढ़ रहा लौ तेरी यादों की दिल में मेरे जल रहा मन मेरा कह रहा तूँ है मेरी मैं हूँ तेरा जब से बिछुरी है तूँ विरह के तरप को सिने से लगा ये न पूछो कैसे मैं जी रहा करवटें बदलते हुए रात कट जाती है सुबह के होते ही बात वही हो जाती है सब से मैं ये पूछ रहा छोड़ चली गयी तूँ कहाँ ? दिल तुझे ढूंढ़ रहा मर - मर कर भी जी रहा ओ मेरी जाने जहाँ न हो तूँ बेवफ़ा कह दे अब मुझ से गर हो कोई गिला शिकवा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 19-06-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
लब पे आ गयी है बात जो उसे ओठों से निकल ही जाने दो घटा जब छा ही गयी है तो उसे बरस ही जाने दो बागों में बहार आ ही गयी है जो तो बागों को महक लुटाने ही दो चटख उठी हैं ये शोख कलियाँ तो भौंरे को रस चूस ले ही जाने दो उठ गयी है जो तूफान सागर में तो किनारे को बहा ले जाने ही दो कोयल कूक उठी है तो पायल छनक ही जाने दो कह दो सिर्फ एक बार ये अल्फाज कि ' मुझे तुम से प्यार है ' बस नहीं है सिर्फ उधर ही ये आग लगी तेरी ये तस्वीर है बेशक करारे जिन्दगी तेरे ही रहमत पे है मेरा इश्त्हारे जिन्दगी दौर में सागर रहे गर्दिस में पैमाना रहे हम तेरे प्यार में हरदम दीवाना रहें न मिटेगी ये आरजू सनम जब तक जिंदा हैं हम !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 26-07-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
लोग आ रहे हैं जा रहे हैं मैं जिन्दगी की राह में तन्हाँ फाँके खा रहा हूँ लोग जी रहे हैं आशा में पर मैं प्यासा ही खड़ा हूँ तेरी आशा लिए निराशा के धुंध में एक नजर लोग देख लेते हैं फिर खो जाते हैं जिन्दगी के भीड़ में उनको पहचाना सा चेहरा लगता हूँ पर क्यों करें खोज रहा नहीं जब कुछ मेरे पास में जब तक कुछ था उनका साथ रहा पर अब क्यों जियें वो मेरी चाह में बहार किसे पसंद नहीं फिर कोई क्यों आये मेरे पतझर से जीवन में ठोकर और दुत्त्कार यही मिला है जीवन को वरदान में इन्कार और फटकार से हो गयी है मित्रता लोग आ रहे हैं जा रहे हैं मैं खा रहा हूँ फाँके तन्हा जिन्दगी के राह में !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 18-06-1980 चित्र गूगल के सौजन्य से
कैसी अबूझ पहेली हो तुम रूप रस जवानी की प्रतिमा हो तुम तेरे बगैर अब हर एक पल साँसों का मुझ पर बढ़ता है बोझ तेरे विरह में बादल दो बह नदियाँ बनी पग मेरे हो रहे हैं कमजोर तन्हाई का बढ़ रहा है जोड़ बहारें चुप हैं सावन रोती विरह के गीत चकोर हैं गाते छुप गई चंदा छोड़ गई है चाँदनी दर्पण देख लगती है हँसी शायद मैं हूँ वही जो था कभी मनचाहा मन अब अनचाहा है मखमल के भी सेज बनी काँटों की शैय्या है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1984 चित्र गूगल के सौजन्य से