148 .
जान को पिघला दूँ वो चिराग हूँ मैं
और तूँ है वो सुबह
जिस से दिल खिल उठता है
जलता रहता हूँ जब तक
तुझे नहीं देख लेता हूँ मैं
और झट बुझ जाता हूँ
सामने जब तूँ आ जाती है
नजदिक तो मैं तेरे इतना हूँ
दिल की धड़कन भी सुन लेता हूँ
दूर तूँ इतनी है
तुझे छू भी नहीं पाता हूँ
अब तो न मुझे मिलने की हिम्मत है
और न जुदाई की ताकत है
क्योंकि वहीं से मुझको जुल्मत मिली है
चमक तुने जहाँ से पायी है
इस नश्वर संसार को मत दिल दे तूँ अपना
कभी वो चले जायेंगे कभी तुम्हे है चला जाना
फूल का हँसना बदमजा है
और बुल - बुल की फरियाद का
कोई जबाब नहीं है
मुफ्त में तोहमते चंद अपने सर ओढ़ चले
आये थे किसलिए और क्या कर चले
है प्यार का दरिया या कोई तूफान है
ऐसे जीने से भला हम तो मर चले
जब हो गये पैदा एक ही दाने से
दरख़्त , पत्ते , फल और छाल
तो कहना ये नहीं होगा गलत
हम भी उसी एक बीज के हैं रूपाकार
हैं जिस तरह एक ही बीज के
गुलोखार , फूल और कांटे
हैं जैसे एक ही समय के
दो हिस्से दिन और रात
एक ही जीवन के दो आकार
सोना और जाग्रत
है उसी तरह ' उनका ' ये
दो परवाना जीवन और मौत
मैं ही वो ' मौत ' हूँ
जिसे तुम भूलना चाहते हो
मुझे ही वो बदकिस्मत समझते हो
जिससे तुम्हे बेहद नफ़रत है
मैं ऐसी बेकार नहीं
न ही रूप भयानक है
यह मेरा रहस्य भेद बहुत ही आनंददायक है
मैं तुम्हारी कूटमज्जा
और ख्वाबे गफ़लत से जगाने वाली हूँ
दुनिया रूपी भयानक स्वप्न से
दूर करने वाली हूँ
तेरी तमाम कशमोकश से राहत दिलाने वाली हूँ
मैं तेरी फूल का मुरझाना नहीं
पक्षियों के चोंच से बचाने वाली हूँ
मैं भयानक कहाँ हूँ
भयानक तेरी दुनिया है
बरसाते हो जहाँ सौ - सौ आँसू
अरमानो के तले
दबी तुम्हारी जिन्दगी है
एक सुख की इक्षा में लाख दुःख सहते रहो
एक फूल को पाने के लिए
लाखों कांटों से खेलते रहे
एक मोती को पाने के लिए
हजारों तूफान से लड़ते रहे
कोई एक जर्रा चाह रहा
तो कोई एक कतरे की तरफ दौड़ रहा
पर मुझे तेरी चाहत का प्याला खिंच रहा
तुझसे देखा सबको
और तुझको न देख सका
तूँ रहा आँखों में मेरे
और मुझसे ही छुपा रहा
तुझसे छू कर समझा सबकुछ
पर तूँ हर स्पर्श में भी छुपा रहा
अब मैं तेरी बात छोड़कर
शराब और गवैये की बात कर रहा
दलीलों से तेरा पता नहीं मिलता
सुलझा रहा था धागों को शिरा नहीं मिलता
तुझे पाना किस कदर मुश्किल होगा
अब जिश्मे शहर में अपना पता नहीं मिलता
जब चला लेने थाह तेरी
तुझमे ही तब खो गया
जब गम हुए आप ही
तो तेरा बताना क्या रहा
मोहब्बत हुस्न की तरफ चली
तो वापिस आने के काबिल न रहा
सोंचा जो करूँगा शाहे बेमिसाल की तारीफ़
पर देख कर तुझे वापिस आने के काबिल न रहा
भौंरा फूल की ओर जा रहा
परवाना शमा की ओर जा रहा
हम भी इसी तरह खिंचे चले आ रहे
तेरे प्यार में दिल मेरा दीवाना बनता जा रहा
तलाश किया बहुत तलाश किया
जहीं गया वहीं झाँक - झाँक कर तेरा तलाश किया
एक झलक दिखा कर जब से छुपी हो
ढूंढ़ रहा ढूंढ़ रहा तुझे ही बस ढूंढ़ रहा
बेपर्दगी ऐसी कि हर जर्रे में
तेरा जलवा नज़र आ रहा है
उसपे पर्दा ऐसा तेरी सूरत भी नहीं देख पा रहा
जबसे तेरी मोहब्बत को समझा हूँ
तुझसे ही बंधा रहा
दिल देकर हाथ में तुझको
खुद हैरान घूमता रहा
कभी जुल्फें कभी सूरत देखी
देखते ही देखते कितनी बार
तुम में ही गुम होता रहा
कहते हैं इश्क की लगी लगाये नहीं लगती
लग जाये तो बुझाये नहीं बुझती
बन के लहर सागर के सीने पर
मचलता रहा
चाहता हूँ टूट जाये ये जिस्म
जब - जब ये जुदाई का कारण बनता रहा
मिला दूँगा तेरे जर्रे में हर कतरा अपना
गर तेरे दिल से आशनाई मिलती रही
दिल के न रहने पर
जिश्म मेरा बेचारा हो गया
क्योंकि दिल मेरा
मोहब्बत में आवारा हो गया
शबनम की फ़ौज ने
फूल को मसलना चाहा
मिल कर सभी फ़िक्र
दिल को मसलता रहा
इतने में झोंका एक हवा का आया
शबनम सारी गिर गयी
फूल को जब उसने छेड़ा
ये मेरी पावों का था एहसान
मेरे गिरने के बहाने
सहारा उनका मिलता रहा
कौन ठीक कर सकता
अब मुझको भला
क्योंकि इश्क के
दर्दमंद की दवा सिर्फ दीदार रहा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 28-08-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
जान को पिघला दूँ वो चिराग हूँ मैं
और तूँ है वो सुबह
जिस से दिल खिल उठता है
जलता रहता हूँ जब तक
तुझे नहीं देख लेता हूँ मैं
और झट बुझ जाता हूँ
सामने जब तूँ आ जाती है
नजदिक तो मैं तेरे इतना हूँ
दिल की धड़कन भी सुन लेता हूँ
दूर तूँ इतनी है
तुझे छू भी नहीं पाता हूँ
अब तो न मुझे मिलने की हिम्मत है
और न जुदाई की ताकत है
क्योंकि वहीं से मुझको जुल्मत मिली है
चमक तुने जहाँ से पायी है
इस नश्वर संसार को मत दिल दे तूँ अपना
कभी वो चले जायेंगे कभी तुम्हे है चला जाना
फूल का हँसना बदमजा है
और बुल - बुल की फरियाद का
कोई जबाब नहीं है
मुफ्त में तोहमते चंद अपने सर ओढ़ चले
आये थे किसलिए और क्या कर चले
है प्यार का दरिया या कोई तूफान है
ऐसे जीने से भला हम तो मर चले
जब हो गये पैदा एक ही दाने से
दरख़्त , पत्ते , फल और छाल
तो कहना ये नहीं होगा गलत
हम भी उसी एक बीज के हैं रूपाकार
हैं जिस तरह एक ही बीज के
गुलोखार , फूल और कांटे
हैं जैसे एक ही समय के
दो हिस्से दिन और रात
एक ही जीवन के दो आकार
सोना और जाग्रत
है उसी तरह ' उनका ' ये
दो परवाना जीवन और मौत
मैं ही वो ' मौत ' हूँ
जिसे तुम भूलना चाहते हो
मुझे ही वो बदकिस्मत समझते हो
जिससे तुम्हे बेहद नफ़रत है
मैं ऐसी बेकार नहीं
न ही रूप भयानक है
यह मेरा रहस्य भेद बहुत ही आनंददायक है
मैं तुम्हारी कूटमज्जा
और ख्वाबे गफ़लत से जगाने वाली हूँ
दुनिया रूपी भयानक स्वप्न से
दूर करने वाली हूँ
तेरी तमाम कशमोकश से राहत दिलाने वाली हूँ
मैं तेरी फूल का मुरझाना नहीं
पक्षियों के चोंच से बचाने वाली हूँ
मैं भयानक कहाँ हूँ
भयानक तेरी दुनिया है
बरसाते हो जहाँ सौ - सौ आँसू
अरमानो के तले
दबी तुम्हारी जिन्दगी है
एक सुख की इक्षा में लाख दुःख सहते रहो
एक फूल को पाने के लिए
लाखों कांटों से खेलते रहे
एक मोती को पाने के लिए
हजारों तूफान से लड़ते रहे
कोई एक जर्रा चाह रहा
तो कोई एक कतरे की तरफ दौड़ रहा
पर मुझे तेरी चाहत का प्याला खिंच रहा
तुझसे देखा सबको
और तुझको न देख सका
तूँ रहा आँखों में मेरे
और मुझसे ही छुपा रहा
तुझसे छू कर समझा सबकुछ
पर तूँ हर स्पर्श में भी छुपा रहा
अब मैं तेरी बात छोड़कर
शराब और गवैये की बात कर रहा
दलीलों से तेरा पता नहीं मिलता
सुलझा रहा था धागों को शिरा नहीं मिलता
तुझे पाना किस कदर मुश्किल होगा
अब जिश्मे शहर में अपना पता नहीं मिलता
जब चला लेने थाह तेरी
तुझमे ही तब खो गया
जब गम हुए आप ही
तो तेरा बताना क्या रहा
मोहब्बत हुस्न की तरफ चली
तो वापिस आने के काबिल न रहा
सोंचा जो करूँगा शाहे बेमिसाल की तारीफ़
पर देख कर तुझे वापिस आने के काबिल न रहा
भौंरा फूल की ओर जा रहा
परवाना शमा की ओर जा रहा
हम भी इसी तरह खिंचे चले आ रहे
तेरे प्यार में दिल मेरा दीवाना बनता जा रहा
तलाश किया बहुत तलाश किया
जहीं गया वहीं झाँक - झाँक कर तेरा तलाश किया
एक झलक दिखा कर जब से छुपी हो
ढूंढ़ रहा ढूंढ़ रहा तुझे ही बस ढूंढ़ रहा
बेपर्दगी ऐसी कि हर जर्रे में
तेरा जलवा नज़र आ रहा है
उसपे पर्दा ऐसा तेरी सूरत भी नहीं देख पा रहा
जबसे तेरी मोहब्बत को समझा हूँ
तुझसे ही बंधा रहा
दिल देकर हाथ में तुझको
खुद हैरान घूमता रहा
कभी जुल्फें कभी सूरत देखी
देखते ही देखते कितनी बार
तुम में ही गुम होता रहा
कहते हैं इश्क की लगी लगाये नहीं लगती
लग जाये तो बुझाये नहीं बुझती
बन के लहर सागर के सीने पर
मचलता रहा
चाहता हूँ टूट जाये ये जिस्म
जब - जब ये जुदाई का कारण बनता रहा
मिला दूँगा तेरे जर्रे में हर कतरा अपना
गर तेरे दिल से आशनाई मिलती रही
दिल के न रहने पर
जिश्म मेरा बेचारा हो गया
क्योंकि दिल मेरा
मोहब्बत में आवारा हो गया
शबनम की फ़ौज ने
फूल को मसलना चाहा
मिल कर सभी फ़िक्र
दिल को मसलता रहा
इतने में झोंका एक हवा का आया
शबनम सारी गिर गयी
फूल को जब उसने छेड़ा
ये मेरी पावों का था एहसान
मेरे गिरने के बहाने
सहारा उनका मिलता रहा
कौन ठीक कर सकता
अब मुझको भला
क्योंकि इश्क के
दर्दमंद की दवा सिर्फ दीदार रहा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 28-08-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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