रविवार, 7 दिसंबर 2014

352 .शंकाकुल ये मन

३५२ 
शंकाकुल ये मन 
असंतुलित ये जीवन पथ 
स्वाभाविक संकोच 
हर लेते जीवन के सच 
यथार्थ से सर्वदा दूर 
भविष्य हो जाता क्रूर 
कल्पनातीत भविष्य 
दिखाता महा दुर्भिक्ष !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

कोई टिप्पणी नहीं: