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रंगों पे रंग सब रंगहीन
चेहरे पे चेहरे सब अर्थहीन
होली में हो रहे बदरंग
क्या अमीर क्या दीन - हीन
त्रस्त हैं सब , परम्पराएं हैं तर्कहीन
ओठों पे मुस्कान हैं पर रसहीन
दिल है प्यार विहीन
समझदारी के उस पार कर्तव्यहीन
होली लग रही बच्चों से रंगीन
क्या बूढ़े क्या जवान सब गमगीन
समय , भाषा , काल , देश का भेदहीन
होली में भी न हो रहा किसी का मिलन !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 17-03-1984 12-35 पी.एम्
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