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श्रीमहासरस्वती
दनुज दलित दुर्गे भयहारिणि जय पूरित मनकामे।
शुम्भ निशुम्भ निसुदिनि भगवति महासरस्वति नामे।।
धन रूचि केश भेष अति शोभित आनन आनन्द कंदा।
तीनि नैन छवि अतिहि विराजित भालब्याल तनु चन्दा।।
सूल शंखरथि अंक वाण तुअ दहिन भाग कर चारी ।
घन हल पुनु मुसल सराशन वाम भाग कर धारी।।
अनुगति शंकरि असुर भयंकरि सारद शशि सम देहा।
बाहन सिंह लसै तुअ अनुपम निज जन परम सिनेहां।।
रत्नपाणि कर पुट कय जाचति सुनिये देवि मन लाई।
मिथिलापुर के पुरिये मनोरथ निसदिन रहिये सहाई।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )
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