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देवी श्रृंगार
सकल श्रृंगार सुभग शुभ वेशा। नृप गृह देवि कयल परवेशा।
दिन दिन मंगल कारिणि धन्या। सिंह चढ़ल राजै गिरिकन्या।।
शारद चंद सुरुचि चय देहा। कृपा विलोचनि भक्त सिनेहा।।
क्षमा करिअ निज जन अपराधें। त्रिभुवन तारिणि शील अगाधे।।
रत्नपाणि कर गोचर आजे। सतत परिय मिथिलेशक काजे।।
( तत्रैव )
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