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ज्वार भाटा
और समुद्र का किनारा
तनहा परछाई
अव्यक्त हाव भाव
निरीह आराधना
श्रवण शक्ति के लिए
कमजोड पड़ गयी
समुद्र की भीषण गर्जना
निर्विकार सउद्देश्य
खड़ा मूर्तिमान
खंठ से मेरे
अज्ञानवश
एक प्रश्न उभरा
मित्रवर्य ! क्या कुछ खो गया ?
जवाब में
एक निश्छल निराकार मुस्कराहट
और दृष्टिबोध से दूर
सामने
समुद्र की शून्य ओर
उठती हुई
उसकी ऊँगली के
इंगित स्थान !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४
३ - १ २ pm
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