रविवार, 23 जून 2013

263 . अंकित दीवार खड़ी थी


२ ६ ३ .

अंकित दीवार खड़ी थी 
मेरे आत्मा की धरोहर 
जिसमे पड़ी थी 
बाहर से मैं पुकारता रहा 
सभी सुन - सुन कर भी 
ऊंघते रहे 
मेरे अधरों से 
उखड़े - उखड़े 
गीत उड़ते रहे 
रौशनदान से 
गंदली धुप 
घर को 
मटमैला करती रही 
प्यासा 
मेरा रक्त 
मैं खोजता रहा 
हर जददोजहद से दूर 
अपने वजूद को 
ढूंढ़ता रहा 
खाली - खाली 
सब कुछ था 
बन के 
मैं 
एक प्रतीक्षा का पात्र 
त्यक्ता की तरह 
बाहर खड़ा था !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४ 
४ - ४ ५ pm 

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