रविवार, 23 जून 2013

262 . अवसादों से लिपटा


२ ६ २  .

अवसादों से लिपटा 
तंग अरमानों के फूल 
कंपकपाती 
तृष्णा की लहर 
अर्ध खिली 
नन्ही पंखुरियां 
वृक्ष विशाल 
ढह जाते 
न्यूनतम आकांक्षा 
घासों के मैदान बन 
कभी नहीं उखड़ते 
डर उसे 
ऊँची डाली पर 
जिसके घोंसले 
डर तितली के घर को क्या ?
पंखुरियों को घर आँगन 
ऊपर विस्तृत नभ 
उपवन की उन्मुक्त साम्राज्ञी 
मौसम तो 
रंग अपना 
बदलता रहा 
उसे अवसादों से क्या लेना 
निरीह मन 
अभिलाषाओं का फूल 
सपनो को सिर्फ भाये 
है यह एक गंध हीन फूल !

सुधीर कुमार ' सवेरा '   १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४ 
० ४ - ० ८ pm 

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