( उज्जवल सुमित )
२ ७ ० .
स्वपनिल संसार ये सारा
या आंखे मेरी उनिन्दें
भटके यूँ मारा - मारा
काली स्याही से पुती
हर घर की उजली दीवाल
नफरत क्यों मेरे सांसों में घुटी
तेरे शब्दों का छलन
खा गयी मेरी निर्दोषिता
भर गयी सीने में एक जलन
हर लम्हे की ये उदासी
देकर तुझको खुशियाँ सारी
मेरे जीवन में क्यों छायी ?
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२ ८ - ० ६ - १ ९ ८ ४
१ - १ ५ pm कोलकाता
२ ७ ० .
स्वपनिल संसार ये सारा
या आंखे मेरी उनिन्दें
भटके यूँ मारा - मारा
काली स्याही से पुती
हर घर की उजली दीवाल
नफरत क्यों मेरे सांसों में घुटी
तेरे शब्दों का छलन
खा गयी मेरी निर्दोषिता
भर गयी सीने में एक जलन
हर लम्हे की ये उदासी
देकर तुझको खुशियाँ सारी
मेरे जीवन में क्यों छायी ?
सुधीर कुमार ' सवेरा '
२ ८ - ० ६ - १ ९ ८ ४
१ - १ ५ pm कोलकाता
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