बुधवार, 6 जुलाई 2016

566 .श्रीमहालक्ष्मी


                               श्रीमहालक्ष्मी 
जै कमला कमलयत लोचनि भव भय मोचनि कन्या !
धन रूचि कुच चामी कर तनु रूचि चारि भुजा अतिधन्या !!
चारु किरीट विराजित मस्तक धारनि पाटक चीरे !
लसय वराभय कर दुई दुह पदमयुगल सुधीरेे !!
चारि कनकघट भरल सुधारस अमृत गज कर लाए !
वाम दहिन भय् सिञ्चित कर मुख कमल मनोहर जाए !
मणिगण जटित लसित भूखण तनु करुणा करू जगमाता !
शंकर किंकर इन्द्र आदि सुर सेवक जनिक विधाता !!
पंकज आसन परम विकासन ताहि उपर लस देवी !
रत्नपाणि तसु ध्यान मगन मन श्रीमिथिलेशक सेवी !!
( तत्रैव )

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