रविवार, 10 जुलाई 2016

570 . श्रीकाली


                         श्रीकाली 
आदि भवानि विनय तुअ पाय ! तुअ सुमरैत दुरत दूर जाय !
सिंह चढ़ल देवि देल परवेश ! बघछल पहिरन योगिन वेश !!
बाम लेल खपर दहिन लेल कांति ! असुरकँ बधय चललि निशि राति !
मारल असुर भक्त प्रतिपाल ! बिछि - बिछि गाधल मुण्डक माल !!
तोहि भल छाज देवि मुण्डहार ! नूपुर शब्द उठय झनकार !
भनई विद्यापति काली केलि ! सदा रहु मैया दाहिनि भेलि !!
                                                                ( प्राचीन गीत )

कोई टिप्पणी नहीं: