श्रीगंगा १
ब्रह्म कमण्डलु - वास - सुवासिनि सागर - नागर - गृह बाले !
पातक महिष - विदारण - कारण धृत करवाल बीच माले !!
जय गंगे जय गंगे शरणागत भय भंगे !
सुर - मुनि - मनुज रचित पूजोचित कुसुम विचित्रित तीरे !
त्रिनयन - मौलि - जटाचय चुम्बित भूति - भुसित सित नीरे !!
हरिपद - कमल - गलित मधुसोदर पुण्य पुनित सुर लोके !
प्रबिलसदमरपुरी पद दान विधान विनाशित शोके !!
सहज दयालुतथा पातकि जन नरक निवारण निपुणे !
रुद्रसिंह नरपति वरदायक विद्यापति कवि भणित गुणे !!
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