५७९ श्रीगंगा २
सुरसरि सेवि मोरा किछुओ ने भेला। पुनमति गंगा भगीरथ लय गेला।।
जखन महादेव गंगा कएल दाने। सुन भेल जटा औ मलिन भेल चाने।।
उठबह बनियां तों हाट बजारे। एहि पथ आओत सुरसरि धारे।।
छोट मोट भगीरथ छितनी कपारे। से कोना लओताह सुरसरि धारे।।
विद्यापति भन विमल तरंगे। अन्त सरन देव पुनमति गंगे।।
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