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श्रीगंगा ६
हे गंगे न गुमल भल मन्द यौवन दापे। गुपुत वेकत अरजल कत पापे ।।
कत कत पाप कयल हम रोसे। अधम उधारिनी तोहर भरोसे।।
निरधन धन जक राखल गोये। तुअ पय परसल हनल सब धोये।
दिअ दरसन मन आतुर मोरा। करिय कृतारथ लोचन जोरा।।
कर जोड़ि विनति महेश निवेदे। मरण शरण दिअ अन्त परिछेदे।।
( तत्रैव )
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