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श्रीश्यामा
जै जै जै महिषासुर मर्दिनि जगत विदित तुअ श्यामा।
सुर मुनि आदि ध्यान नहि पाबथि अहर्निश जप तुअ नामा।।
विकसित वदन चिकुर चामर जनि चान तिलक शोभे माथा।
मुण्डमाल बघछाल सम्हारिअ योगिनगण लिये साधा।।
अरिदारिणी सुर पालनि भगवति सिंह पीठ असवारा।
विविध रूप जग दुरित निवारिणि कारिनि असुर संहारा।।
तीनि भुवन अनुपालिनि भगवति कमलनैन लखु ग्याने।
छेमिअ छेमिअ शंकर अवगुण देहु चरण उर ध्याने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश )
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