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श्री विश्वेश्वरी
जय जय अम्बा विश्वेश्वरी। किछु ने फुरै जे करि।।
मोर माथे धरि दिअ हाथे।
चललहू सुरसरि , घनघाम परिहरि , तोहर अभयवर साथे।।
पुरती हमरि आशा , शिव जटाजूटवासा , अनुकुलदेवी जत देवा।
इहो तन परित्यागी , होयब सुमति भागी , शिवक जन्म भरि सेवा।।
परजा रंजन मन , हरपति सब खन , हसाय खेलाय कर लेथि।
अतिथिक सतकार , इष्ट पूजा उपचार , सुविचार धन नित देथि।।
जननी समान आन , नारीगण मनमान , कविवर विद्यापति भाने।
जे मोर बान्धव लोक , मन नै करथु शोक , कालगति अछि परमाने।।
( तत्रैव )
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